भोपाल। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट द्वारा जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल को अवैध घोषित करने के बाद आदेशित किया था कि वह तत्काल काम पर लौटें और संकट की स्थिति में गरीबों का इलाज शुरू करें लेकिन हड़ताली डॉक्टरों ने हाईकोर्ट का आदेश नहीं माना। उनके द्वारा दिए गए इस्तीफे मंजूर नहीं हुए हैं, नियमानुसार उन्हें इस्तीफा मंजूर होने तक कर्तव्य पर उपस्थित होना चाहिए लेकिन सभी डॉक्टर इलाज बंद हड़ताल कर रहे हैं।
हाईकोर्ट के आदेश के बाद इस्तीफा, कानूनी या गैर कानूनी
हाई कोर्ट द्वारा कर्तव्य पर उपस्थित होने का आदेश देने के बाद हड़ताली डॉक्टरों द्वारा इस्तीफा दिया गया। बड़ा प्रश्न यह है कि इस प्रकार का इस्तीफा कानूनी है अथवा गैर कानूनी। क्या इस तरह की गतिविधि को आम जनता की जान को जोखिम में डालने वाला अपराध माना जाना चाहिए। इस बार जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल का आम जनता के बीच काफी विरोध हो रहा है। अतः यह विचार भी किया जा रहा है कि क्या हड़ताली डॉक्टरों के खिलाफ कोई जागरूक नागरिक प्राइवेट पिटीशन अथवा जनहित याचिका लगा सकता है।
सामूहिक इस्तीफा कुछ नहीं होता, व्यक्तिगत इस्तीफा दें: चिकित्सा शिक्षा विभाग
सेंट्रल जूडा प्रेसीडेंट डॉ. अरविंद मीणा ने कहा कि सरकार ने उनकी मांगें मानने की सहमति दी थी, लेकिन अब वादा खिलाफी की जा रही है। उन्होंने यह भी कहा कि आंदोलन जारी रहेगा। उधर, चिकित्सा शिक्षा विभाग के अफसरों ने कहा कि सामूहिक इस्तीफा कानूनी तौर पर कोई शब्द नहीं है, न ही इस पर कोई निर्णय लिया जा सकता है। किसी डॉक्टर को इस्तीफा देना है तो व्यतिगत तौर पर दे। अधिकारियों ने यह भी कहा कि जूनियर डॉक्टर यदि काम पर नहीं लौटते हैं तो मेडिकल काउंसिल से भी पंजीयन निरस्त करने की कार्रवाई की जाएगी।
स्टाइपेंड जूनियर डॉक्टरों का अधिकार नहीं है- डीएमई ने कहा
संचालक चिकित्सा शिक्षा डॉ. उल्का श्रीवास्तव ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि जूनियर डॉक्टर पढ़ाई करने के लिए अपनी पसंद से आए हैं। उन्हें विज्ञापन देकर नहीं बुलाया गया है। वे छात्र हैं। इनका मुख्य काम है पढ़ाई करना। मरीजों का उपचार इनका मूल काम है। यह उनके लिए प्रैक्टिकल है। मानवता के नाते और छात्र होने के नाते कोरोना काल में इस तरह आंदोलन ठीक नहीं है। चिकित्सा शिक्षा आयुक्त निशांत वरवड़े ने कहा कि 2018 के मानदेय में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के आधार पर बढ़ोतरी करने के प्रस्ताव शासन को भेजा है।