भोपाल। मप्र तृतीय वर्ग शास कर्म संघ" के प्रांताध्यक्ष श्री प्रमोद तिवारी एवं प्रांतीय उपाध्यक्ष कन्हैयालाल लक्षकार ने कहा कि- प्रदेश में जुलाई माह में मिलने वाली वार्षिक वेतनवृद्धि को बड़ी सफाई से रोका गया है। इससे कर्मचारियों में भारी नाराजगी व आक्रोश व्याप्त हैं। कुपित कर्मचारियों को अब यह हजम नहीं हो रहा है कि कोरोना के बहाने जुलाई 2019 से मिलने वाले 4 फीसदी डीए डीआर आदेश बावजूद रोका गया। दूसरे चरण में सातवें वेतनमान की तृतीय किश्त का भुगतान रोका गया। अब वार्षिक वेतनवृद्धि रोककर कहा गया है कि "तय समय पर ही" इसका भुगतान किया जाएगा, लेकिन समय "टाला जा" रहा है।
यह कर्मचारियों को जानबूझकर आर्थिक बदहाली की ओर धकेलने का सरकार का आसान व कर्मचारियों के लिए नुकसानदायक रास्ता है। इधर प्रदेश में भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के लिए पृथक मापदंड अपनाते हुए उक्त डीए डीआर जुलाई 2019 से अक्तूबर 2019 में जारी आदेशानुसार एरियर सहित भुगतान कर दिया व प्रतिमाह भुगतान बदस्तूर जारी है, आश्चर्य है इसे वापस नहीं लिया गया है। अभी प्रदेश में कर्मचारियों को 12% व भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को 17% डीए डीआर प्राप्त हो रहा है। इस वर्ग के कोई स्वत्व लंबित नहीं है। यह कहाँ तक न्यायोचित है कि छोटे कर्मचारियों को नुकसान पहुंचा कर भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को उपकृत किया जावे?
विडम्बना है कि कोरोना काल में छोटे कर्मचारियों को आर्थिक अनुशासन का पाठ पढ़ाया जा रहा है। सामान्य स्थिति बहाल होने तक छोटे कर्मचारियों को निशाना बनाते वक्त यह भी स्पष्ट किया जाना चाहिए कि "किन परिस्थितियों को सामान्य" माना जाएगा व कब तक इंतजार करना होगा? मप्र तृतीय वर्ग शास कर्म संघ "कर्मचारियों की भावनाओं से अवगत होकर निवेदन करता है कि लगातार छोटे कर्मचारियों की नाराजगी निकटस्थ विधानसभा उपचुनावों में राजनितिक रूप से कहीं घाटे का सौदा न हो जाए, इस पर पुनर्विचार कर समीक्षा की दरकार है।"
देश व प्रदेश की बदस्तूर सभी गतिविधियां यहाँ तक की राजनीतिक गतिविधियों को व खर्चों को देख नहीं लगता कि कोरोना का प्रकोप बरकरार है। यह केवल छोटे कर्मचारियों पर परिलक्षित होना शासन की दौहरी नीति सिध्द करता है, जो लोक कल्याणकारी सरकार के लिए सुखद नहीं हो सकती है।
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