मेंढक कभी पानी नहीं पीता, पृथ्वी पर पहला मेंढक कब पैदा हुआ - Do You Know

मेंढक को आपने अक्सर पानी के आसपास देखा हुआ परंतु क्या आप जानते हैं मेंढक कभी पानी नहीं पीता। शरीर में जल की आपूर्ति के लिए वह अपनी त्वचा से पानी को सोख लेता है। यही कारण है कि वह गहरे पानी में मजे से डुबकी लगा पाता है। आइए आपको मेंढक से मिलवाते हैं, जो इंसानों की जिंदगी के लिए बहुत जरूरी है:-

यदि पृथ्वी पर से मेंढक खत्म हो जाएंगे तो डेंगू और मलेरिया जैसी बीमारियां पैदा करने वाले मच्छर इंसानों की मौत का सबसे बड़ा कारण बन जायेंगे। डेंगू-मलेरिया मच्छर होने पर HIT के साथ-साथ मेंढक भी चाहिए। क्योंकि मेंढक ही मच्छर को पैदा होने से रोक सकता है। 
खेतों में पैदा होने वाले मच्छर, मच्छरों के लार्वा, टिड्डे, बीटल्स, कनखजूरा, चींटी, दीमक और मकड़ी को खत्म करने का काम मेंढक ही करते हैं परंतु किसान कीटनाशक दवाइयां डालकर खेत की रक्षा करने वाले मेंढक को मार डालते हैं।

मेंढक उभयचर वर्ग का जंतु है जो पानी तथा जमीन पर दोनों जगह रह सकता है। 
मजेदार बात यह कि मेढ़क को ठंड से बहुत डर लगता है। सर्दी के दिनों में मेंढक मिट्टी के लगभग 2 फुट नीचे जाकर छुप जाता है और भूख लगने पर भी बाहर नहीं निकलता। 
मेढ़क के अस्तित्व को बचाए रखना इंसानों के लिए बहुत जरूरी है क्योंकि मेढ़क कई प्रकार के कीट पंतगों को खाकर बीमारियों से रक्षा करता है। 
अब तब मेढ़कों की करीब 5 हजार से अधिक प्रजातियां पहचानी जा चुकी है। 
सबसे छोटा मेढ़क 9.8 मिलीमीटर का है। 

मेढ़क अपनी लंबाई से 20 गुना लंबी छलांग लगा सकते है। 
नर मेढ़क मादा मेढ़क से आकार में छोटे होते है। 
मेंढक का वैज्ञानिक नाम- Rana tigrina
भारत में डेंगू मच्छर के पनपने का सबसे बड़ा कारण यह है कि मच्छर के मुख्य शिकारी मेंढक को पकड़ कर उसकी टांगों को फ्रांस सप्लाई कर दिया गया। कभी ध्यान ही नहीं दिया कि टांगे कट जाने के कारण मेंढक अपने आप मर जाता है।
मेंढकों की शुरुआती प्रजाति 7 करोड साल पहले अफ्रीका के जंगलों में पैदा हुई। ये शिकारी मेंढक थे और इन्हें डेविल फ्रॉग के नाम से जाना जाता है।  Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article 

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