निजी विवाद को लेकर हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर हो सकती है या नहीं - जानिए The Indian Constitution, 1950

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 214 के अंतर्गत राज्य में उच्च न्यायालय का गठन किया गया है। राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं एवं मुख्य न्यायमूर्ति की नियुक्ति राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति और राज्य के राज्यपाल के परामर्श के अनुसार करते थे लेकिन अब संविधान के 99वें संशोधन अधिनियम, 2014 में उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण के मामले में अंतिम निर्णय सिर्फ भारत के मुख्य न्यायमूर्ति का माना जाएगा, सरकार का नहीं। सरकार को केवल अयोग्य नियुक्तियों को रोकने की शक्ति होगी -【उच्चतम न्यायालय अभिलेख अधिवक्ता संघ बनाम भारत संघ】।

ज्यादातर सिविल विवाद नागरिकों के निजी विवाद होते हैं और इनको समझौता अनुसार निपटना मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम,1996 का एक प्रमुख कर्तव्य हो सकता है। क्या निजी विवाद को लेकर उच्च न्यायालय में अनुच्छेद 226 के अनुसार कोई जनहित याचिका दायर की जा सकती है तो जानिए महत्वपूर्ण जजमेंट(निर्णय)।

1. मोहन पाण्डे बनाम उषा रानी राजगरिया:- मामले में उच्चतम ने यह अभिनिर्धारित किया हैं कि अनुच्छेद 226 के अधीन उच्च न्यायालय के विशिष्ट अधिकारिता का प्रयोग प्राइवेट पक्षकारों की संपत्ति संबंधी विवादों को विनिश्चित करने में प्रयुक्त नहीं किया जा सकता है। 

प्रस्तुत मामले में प्रत्यर्थीयों ने अपने मकान के खाली कराने के लिए अपीलार्थियों के विरुद्ध सिविल वाद संस्थित किया था एवं इस बीच अनुच्छेद 226 के अधीन अपने कब्जे को कायम रखने के लिए उच्च न्यायालय में याचिका दायर की न्यायालय ने अपीलार्थियों के विरुद्ध कब्जे में हस्तक्षेप न करने का निर्देश दिया। लेकिन उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के निर्देश को असंवैधानिक घोषित कर दिया एवं निर्णय दिया कि उक्त रिट अनुच्छेद 226 अधीन चलन योग्य नहीं है।

2. द्वारका प्रसाद अग्रवाल बनाम बी. डी. अग्रवाल:-

उपर्युक्त मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया है कि अनुच्छेद 226 के अधीन प्रदत उपचार एक सार्वजनिक उपचार हैं और इसका प्रयोग निजी विवादों के निपटारे के लिए बिल्कुल नहीं किया जा सकता है एवं असंवैधानिक भी होगा।

उपर्युक्त वाद से यह स्पष्ट होता है कि कोई भी व्यक्ति निजी मामलों को लेकर उच्च न्यायालय में अनुच्छेद 226 के अंतर्गत याचिका दायर नहीं कर सकते हैं, याचिका सार्वजनिक हितों की रक्षा एवं लाभ के लिए होनी चाहिए न कि निजी रक्षा या लाभ के लिए। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)

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