पुलिस के सामने अपराध की स्वीकृति सजा के लिए पर्याप्त है या नहीं - Evidence Act 1872 Section 25

उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति श्री गोस्वामी ने कहा है कि पुलिस अधिकारी द्वारा पूछताछ का यह बहुत पुराना ढंग चला आ रहा है कि वह टेढ़े या सीधे रास्ते आरोपी से अपराध की स्वीकृति प्राप्त कर लेते हैं। पुलिस अधिकारी को यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि स्वीकृति प्राप्त कर लेना समस्या का हल नहीं बन सकता है। उन्हें चाहिए कि अपनी छानबीन वह स्वीकृति से न चालू करें बल्कि छानबीन द्वारा स्वीकृति पर पहुंचे। 

पुलिस अधिकारी जिस छोटे रास्ते पर चलने की कोशिश करती हैं उसका नतीजा हमेशा यह भी होता हैं कि स्वीकृति से भी जोरदार जो साक्ष्य हो सकता है वह लापरवाही के कारण मिट जाता है। जब आरोपी अपना जुर्म कबूल लेता है तो पुलिस अधिकारी विश्राम की स्थिति में आ जाते हैं और फिर पूर्ण छानबीन द्वारा अपराध से अपराधी तक पहुँचने का प्रयास नहीं किया जाता है। बहुत मामलों में यह बुरा अनुभव मिलता की जब स्वीकृति जो पुलिस ने प्राप्त कर रखी है वह दोषी होने का उचित कारण नहीं होती है और मामला न्यायालय में जाकर गिर जाता है। 

साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 25 की परिभाषा:-

यह धारा स्पष्ट रूप से यह कहती है कि किसी व्यक्ति (आरोपी) की पुलिस अधिकारी द्वारा न्यायालय में दी गई कोई भी स्वीकृति उचित नहीं समझी जाएगी। क्योंकि पुलिस अधिकारी आरोपी को मारपीट कर कुछ भी कहलवा लेती है कि वह किसी आरोप का दोषी है व्यक्ति अपनी चमडी बचाने के लिए ऐसा कह भी देता है, चाहे वास्तव मे वह दोषी न हो। 

एवं इस प्रकार से ली गई स्वीकृति न्यायालय में किसी काम की नहीं होती है एवं न ही ऐसी स्वीकृति पर न्यायालय कोई कार्य कर पाता है। अर्थात पुलिस अधिकारी को आरोपी से स्वीकृति लेने से पहले आरोप के ठोस साक्ष्य प्राप्त करने होंगे तभी किसी भी प्रकार की स्वीकृति न्यायालय द्वारा मान्य होगी अन्यथा नहीं। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)

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