कोर्ट ऑर्डर के बाद भी कैदी को रिहा नहीं किया तो जेलर को सजा हो जाएगी - IPC SECTION 445

रिट यानि की आदेश किसी भी प्रकार का आदेश न्यायालय द्वारा जारी किया जाता है उसे रिट कहा जाता है भारतीय संविधान में अनुच्छेद 32 के अंतर्गत 5 प्रकार की रिट सुप्रीम कोर्ट जारी करता है। लेकिन हम आज के लेख में किसी भी न्यायालय या मजिस्ट्रेट द्वारा किसी भी कैदी को छोड़ने को आदेश दे दिया गया है और कोई पुलिस अधिकारी या जेलर आदेश जारी होने के बाद भी उस कैदी या आरोपी को रोककर रखता है तो यह किस धारा के अंतर्गत अपराध होगा बताएगे।

भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 445 की परिभाषा:-

अगर किसी व्यक्ति को छोड़ने के लिए रिट (आदेश) जारी हो गया हो तब ऐसे व्यक्ति को बेबजह रोककर रखने वाला व्यक्ति धारा 445 के अंतर्गत दोषी होगा। व्यक्ति को आदेश निकलने के बाद थोड़े समय के लिए भी रोककर रखना इस धारा के अंतर्गत दण्डनीय अपराध होगा। छोड़ने के आदेश निकलने के बाद लोकसेवक का कर्तव्य है कि वह बंदी व्यक्ति को तुरंत छोड़ दें, उसे सदोष परिरोध करके न रखे।

भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 445 के अंतर्गत दण्ड का प्रावधान:-

यह अपराध किसी भी प्रकार से समझौता योग्य नहीं है , यह संज्ञेय एवं जमानतीय अपराध होते हैं। इनकी सुनवाई का अधिकार किसी भी मजिस्ट्रेट को होता है। सजा- इस अपराध के लिए अगर वो लोकसेवक है तो अन्य धारा की सजा के साथ दो वर्ष की कारावास से दाण्डित किया जा सकता है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)

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