लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी होल्डर के लिए सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला - INSURANCE UPDATE NEWS

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नई दिल्ली।
यदि आपने अपना जीवन बीमा कराया है या फिर कराने वाले हैं तो सुप्रीम कोर्ट का फैसला आपको ध्यान पूर्वक पढ़ना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी लेने वाले व्यक्ति की जिम्मेदारी है कि वह इंश्योरेंस कंपनी को अपनी बीमारियों के बारे में सभी जानकारियां सही-सही उपलब्ध कराएं। यदि कोई ऐसा नहीं करता और इंश्योरेंस कंपनी को अधिकार है कि वह ऐसा क्लेम खारिज कर दे।

बीमा अनुबंध भरोसे पर आधारित है, ग्राहक उसे तोड़ नहीं सकता: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डी.वाई चंद्रचूड़, इंदु मल्होत्रा और इंदिरा बनर्जी की पीठ ने कहा कि बीमा का अनुबंध भरोसे पर आधारित होता है। कोई व्यक्ति जीवन बीमा लेना चाहता है तो उसका यह दायित्व है कि वह सभी तथ्यों का खुलासा करे, ताकि बीमा कंपनी सभी जोखिमों पर विचार कर सके। कोर्ट ने कहा कि बीमा के लिए भरे जाने वाले फार्म में किसी पुरानी बीमारी के बारे में बताने का कॉलम होता है। इससे बीमा कंपनी उस व्यक्ति के बारे में वास्तविक जोखिम का अंदाजा लगाती है। यह टिप्‍पणी करते हुए कोर्ट ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) का एक फैसला खारिज कर दिया।

केस जीतने के बावजूद बीमा कंपनी क्लेम सेटेलमेंट की रकम की रिकवरी नहीं करेगी

NCDRC ने इस साल मार्च में बीमा कंपनी को मृतक की मां को डेथ क्लेम की पूरी रकम ब्याज सहित देने का आदेश सुनाया था। बीमा कंपनी ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि कार्यवाही लंबित रहने के दौरान उनकी ओर से क्लेम की पूरी राशि का भुगतान कर दिया गया है। जजों ने पाया कि मृतक की मां की उम्र 70 साल है और वह मृतक पर ही आश्रित थी। इसलिए उन्होंने आदेश दिया कि बीमा कंपनी इस रकम की रिकवरी नहीं करेगी।

सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग की आलोचना की

शीर्ष अदालत ने NCDRC की आलोचना करते हुए कहा कि जांच के दौरान मिली मेडिकल रिपोर्ट में यह साफ पाया गया कि बीमा कराने वाला पहले से ही गंभीर बीमारी से जूझ रहा था। इस बारे में बीमा कंपनी को नहीं बताया गया था। जांच के दौरान पता चला था कि उसे हेपेटाइटिस-सी की बीमारी थी। इस तथ्य को छुपाने के आधार पर बीमा कंपनी ने मई 2015 में क्लेम रद्द कर दिया था। इसके बाद नॉमिनी ने जिला उपभोक्ता विवाद निवारण फोरम में शिकायत दी थी। इस पर फोरम ने बीमा कंपनी को ब्याज के साथ बीमा राशि चुकाने का आदेश दिया था।

पॉलिसी के फॉर्म में खुद को पूरी तरह स्वस्थ बताया था

संबंधित व्यक्ति ने पॉलिसी के लिए अगस्त, 2014 में बीमा कंपनी से संपर्क किया था। इसके फॉर्म में स्वास्थ्य और मेडिकल हिस्ट्री से जुडे़ सवाल थे। इसमें मौजूदा बीमारी, अस्पताल में भर्ती होने या इलाज के बारे में जानकारी देनी थी। उन्होंने इन सवालों के जवाब नहीं में दिए। इन जवाबों के आधार पर बीमा पॉलिसी जारी कर दी गई। सितंबर, 2014 में, उस व्यक्ति की मौत हो गई। इसके बाद मेडिकल क्लेम के लिए दावा किया गया था।

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