भारतीय दंड संहिता की धारा 100 में 7 ऐसी परिस्थितियों का वर्णन है जिनमें रक्षा के लिए हमलावर पर किया गया जवाबी हमला (ऐसा हमला जिसमें हमलावर की मृत्यु हो जाए) सजा नहीं बल्कि माफी के योग्य होता है (क्लिक करके पढ़िए) लेकिन प्रश्न यह है कि कैसे सुनिश्चित किया जाएगा कि जवाबी हमला आत्मरक्षा के लिए किया गया या फिर हमलावर की हत्या के लिए। बड़ा प्रश्न यह है कि आत्मरक्षा का अधिकार कब उत्पन्न होता है और कब समाप्त हो जाता है। जैसे यदि कोई तलवार लेकर आप पर हमला करे और उसे रोकने के लिए आप पिस्तौल से फायर करें, जिससे उसकी मृत्यु हो जाए तो इसे आत्मरक्षार्थ माना जा सकता है परंतु यदि कोई हत्या की धमकी देकर हवाई फायर करे तब क्या उस व्यक्ति को आत्मरक्षा के नाम पर गोली मारी जा सकती है। आईपीसी की धारा 102 में ऐसे ही प्रश्नों का उत्तर दिया गया है:-
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 102 की परिभाषा:-
धारा 102 में बताया गया है कि व्यक्ति को निजी सुरक्षा के बचाव कब होगा और कब तक जारी रहेगा -
1. तब कोई हमलावर ने तुरन्त हमला किया हो, और जब तक उस हमलावर से खतरे की आशंका है।
2. अगर हमलावर के हाथ में कोई धारादार हथियार है तब तक आप निजी सुरक्षा के अधिकार को प्राप्त कर सकते हैं।
कब नहीं मिलता निजी सुरक्षा का अधिकार व्यक्ति को
1. अगर हमला करते समय हमलावर निहत्था हो जाता है तब या वह आत्मसमर्पण कर दे तुरंत तब।
2. सामान्य धमकी देने पर आपको निजी सुरक्षा का अधिकार प्राप्त नहीं होता है।
3. यह अधिकार तुरंत प्रारंभ होता है और उसी समय जब तक खतरे की आशंका होती है तब तक बना रहता है। उसके बाद आपके द्वारा किया गया हमला निजी सुरक्षा के अंतर्गत नहीं आएगा।
उधरणानुसार वाद:- नान्हू कहार बनाम बिहार राज्य- मृतक द्वारा आरोपी के पिता पर लाठी से वार किये जा रहे थे जिसके कारण आरोपी को प्रतिरक्षा का बचाव उत्पन्न हुआ, लेकिन मारपीट शांत होने के बाद भी आरोपी ने मृतक पर तेज धार वाले हथियार से हमला किया जिसके कारण उसकी मृत्यु हो गई। न्यायालय ने विनिशिचत किया कि झगड़ा शांत होते ही आरोपी का निजी सुरक्षा का अधिकार समाप्त हो गया था। अतः उसके द्वारा मृतक पर किया गया हथियार से प्रहार निजी सुरक्षा के अधिकार के अंतर्गत नही था।
बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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