किसी भी व्यक्ति की असामान्य मृत्यु पुलिस इन्वेस्टिगेशन का सब्जेक्ट होती है। यदि मृत्यु का कारण हादसा नहीं बल्कि कोई व्यक्ति/ मनुष्य है तो फिर पुलिस हत्या का मामला दर्ज करती है जिसमें फांसी की सजा या कम से कम उम्र कैद होती है लेकिन कुछ परिस्थितियां ऐसी होती है जिनके चलते हुई हत्या का मामला तो दर्ज होता है परंतु कोर्ट में सजा नहीं मिलती। आइए पढ़ते हैं:-
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 100 की परिभाषा:-
धारा 100 में उन सात परिस्थितियों का उल्लेख किया जाता है जिससे आरोपी व्यक्तिगत प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रयोग करके हमलावर की मृत्यु भी कर सकता है। ऐसी मृत्यु अपराध नहीं मानी जायेगी। ये निम्न परिस्थिति है:-
1. हमलावर मृत्यु करने के लिए हमला कर रहा है तब आत्म रक्षार्थ किया गया प्रतिरोध।
2. हमलावर बहुत गंभीर चोट पहुंचा रहा है तब आत्मरक्षा के लिए किया गया जवाबी हमला।
3.किसी महिला का बलात्कार कर रहा है तब, इज्जत बचाने के लिए किया गया हमला।
4. कोई अप्राकृतिक अपराध कर रहा है तब, अपराधी को रोकने के लिए किया गया हमला।
5. किसी का अपहरण या व्यापहरण कर रहा है तब, अपराध को रोकने के लिए किया गया बल प्रयोग।
6. आपराधिक या सदोष उद्देश्य से की को मृत्यु का भय दिखा रहा है जिससे मृत्यु होने की संभावना हो तब।
7. किसी पर एसिड (अम्ल) फेकना या अम्ल देने का कार्य करे तब।
उपयुक्त परिस्थितियों में अगर आरोपी के द्वारा हमलावर की मृत्यु हो जाती है तो वह निजी सुरक्षा के अंतर्गत अधिकार होगा।
उधरणानुसार वाद:- अजीत सिंह बनाम पंजाब राज्य- आरोपी मृतक को सिर्फ गालियां ही दे रहा था जबकि मृतक अपने पास बहुत खतरनाक हथियार रखे था जिससे वह आरोपी पर वार कर ही रहा था।मृतक के हमले के परिणामस्वरूप अपनी मृत्यु के भय से आरोपी ने मृतक पर बल्लम से वार कर दिया जिससे उसकी मृत्यु हो गई। उच्चतम न्यायालय ने आरोपी को धारा 100 के अंतर्गत निजी प्रतिरक्षा का बचाव स्वीकार करते हुए दोषमुक्त कर दिया।
बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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