संविधान ने धार्मिक स्वतंत्रता दी है तो ध्वनि विस्तारक यंत्रों पर प्रतिबंध क्यों - THE CONSTITUTION OF INDIA

भारतीय संविधान अधिनियम, 1950 का अनुच्छेद 25 एवं 26 व्यक्तियों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देता है। वह अपने अपने तरीके से अपने अपने धर्म की पूजा-अर्चना एवं प्रचार प्रसार कर सकता है। सवाल यह है कि जब संविधान में अपने धर्म का प्रचार प्रसार करने की स्वतंत्रता दी है तो फिर धर्म स्थलों एवं धार्मिक कार्यक्रमों में ध्वनि विस्तारक यंत्रों पर प्रतिबंध क्यों लगाया जाता है। आइए पढ़ते हैं सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण जजमेंट:-

चर्च ऑफ़ गाड (फुल गस्पेल) इन इण्डिया बनाम KKRM कल्याण संघ

मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया है कि अनुच्छेद 25 एवं 26 के अंतर्गत धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का प्रयोग करते समय किसी व्यक्ति को ध्वनि प्रदूषण फैलाने का या अन्य व्यक्तियों की शान्ति को भंग का अधिकार नहीं है। 

नगाड़ा बजाकर प्रार्थना करने की प्रथा किसी धर्म के मानने के लिए आवश्यक तत्व नहीं है एवं एक सुसंगठित समाज में कोई भी अधिकार निरपेक्ष नहीं है। अतः उच्चतम न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि संबंधित अधिनियमों नियम अर्थात ध्वनि प्रदूषण अधिनियम आदि को लागू करके ध्वनि-प्रदूषण को रोकना या कम करना विधिमान्य हैं। 

MORAL OF THE STORY 

भारतीय नागरिकों को संविधान के द्वारा कई प्रकार की स्वतंत्रता दी गई है परंतु किसी भी कानून का उल्लंघन करने की स्वतंत्रता नहीं दी गई। भारतीय नागरिकों की स्वतंत्रता की सीमा वहीं पर जाकर समाप्त हो जाती है जहां से भारत में कानून का दायरा शुरू होता है। यानी धर्म का प्रचार करने की आजादी है परंतु ध्वनि प्रदूषण की रोकथाम के लिए बनाए गए कानून का उल्लंघन करने की आजादी नहीं है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)

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