इलाज के दौरान बच्चे की मौत हो जाए तो पिता जिम्मेदार होगा या डॉक्टर - IPC SECTION-88

संरक्षक वह व्यक्ति होता है जो किसी व्यक्ति का भरण-पोषण एवं उसकी सुरक्षा करता है अर्थात माता-पिता 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों के संरक्षक होते हैं एवं एक पागल व्यक्ति के हितों को ध्यान में रखने वाला उसका संरक्षक हो सकता है आदि। कभी-कभी ऐसा होता है कि कोई शिशु या पागल व्यक्ति की गम्भीर बीमारी का इलाज करवाना हैं तब डॉक्टर को इलाज करने के लिए मरीज से नहीं उसके किसी संरक्षित से स्वीकृति लेनी होगी। इससे पिछली धारा - 88 यह बताती थी कि कोई कार्य करने के लिए दो व्यक्ति में आपसी सहमति जरूरी है लेकिन धारा-89 में संरक्षक की सहमति जरूरी होती है प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जानिए।

भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 89 की परिभाषा

ऐसी कोई बात अपराध नहीं होगी जो बच्चों के संरक्षक या पागल व्यक्ति के संरक्षक या कोई बेहोश व्यक्ति के संरक्षक द्वारा सहमति से उसके हितों की रक्षा या फायदा के लिए सावधानीपूर्वक किया जा रहा कार्य और उसने कोई गंभीर खतरा हो जाए। 

अर्थात डॉक्टर द्वारा पिता की सहमति से किया जा रहा बच्चे का ऑपरेशन क्योंकि इसमे बच्चे का हित एवं फायदा होगा ऐसी स्थिति में बच्चे की मौत हो जाए तब न तो पिता (संरक्षक) अपराधी होगा न ही इलाज करने वाला डॉक्टर दोनों को धारा 89 के अंतर्गत माफ किया जाएगा।

अगर माता-पिता अपने बच्चों को बिना आपराधिक उद्देश्य से सावधानीपूर्वक किसी गलत काम करने के लिए सामान्य मारपीट करते हैं एवं इसके कारण बच्चे की मृत्यु हो जाए तब ऐसे माता पिता या संरक्षक को धारा-89 के अंतर्गत क्षमा कर दिया जाएगा।  :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)

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