यज्ञ में आहुति के समय स्वाहा क्यों बोलते हैं , पढ़िए वैज्ञानिक एवं धार्मिक कारण और कथा - GK in Hindi

ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं। भर्गो देवस्य धीमहि, धीयो यो न: प्रचोदयात् स्वाहा।। यह मंत्र तो ज्यादातर लोगों को याद होगा। भारत में करोड़ों लोग प्रतिदिन अपने घर में संक्षिप्त गायत्री यज्ञ का आयोजन करते हैं। यज्ञ के दौरान एक विशेष विधि का उपयोग किया जाता है। हाथ में आहुति लेकर मंत्र का जाप किया जाता है और फिर अग्नि कुंड के समीप जाकर आहुति समर्पित करते समय 'स्वाहा' शब्द का उच्चारण ध्वनि पूर्वक किया जाता है। सवाल यह है कि यज्ञ में आहुति के समय स्वाहा क्यों बोलते हैं।

यज्ञ अथवा हवन में आहुति के समय स्वाहा बोलने का कारण 

यज्ञ अथवा हवन के समय स्वाहा का उच्चारण करने के पीछे एक कथा और शास्त्रों में एक महत्वपूर्ण कारण का उल्लेख किया गया है। स्वाहा को संस्कृत में स्व: लिखा जाता है। इसका हिंदी में अर्थ होता है स्वर्ग लोक। अर्थात स्वर्ग के समान सुख की प्राप्ति हेतु आहुति के समय स्वाहा का उच्चारण किया जाता है।

श्रीमद्भागवत तथा शिव पुराण में स्वाहा से संबंधित वर्णन आए हैं। यज्ञ के रीति विधान में स्वाहा से तात्पर्य होता है विधिपूर्वक सही प्रकार से सामग्री को हवन कुंड के अंदर अग्नि में समर्पित करना। यहां ध्यान देना जरूरी है कि यदि आहुति विधि पूर्वक समर्पित नहीं की जाती है तो हवन कुंड की अग्नि प्रभावित होती है। इसलिए आहुति का विधिपूर्वक होना अनिवार्य है।

यज्ञ अथवा हवन में स्वाहा के उच्चारण की कथा 

धर्म शास्त्रों में एक कथा का उल्लेख है जिसमें दक्ष प्रजापति की पुत्रियों में से एक का नाम स्वाहा था जिसका विवाह अग्निदेव के साथ किया गया। इसलिए यज्ञ अथवा हवन के समय जब भी कोई आहुति समर्पित की जाती है तब स्वाहा का उच्चारण किया जाता है। मान्यता है कि स्वाहा का उच्चारण करने से अग्निदेव आहुति को स्वीकार करते हैं और फल प्रदान करते हैं।

यज्ञ अथवा हवन में स्वाहा के उच्चारण का वैज्ञानिक कारण 

यज्ञ अथवा हवन के समय जब हवन कुंड में अग्नि प्रज्वलित हो जाती है तब कुंड के अंदर कई प्रकार की रासायनिक क्रियाएं हो रही होती हैं। आहुति देने वाले यजमान हमेशा हवन कुंड के सबसे नजदीक बैठे होते हैं। अग्नि को प्रज्वलित होने के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। स्वाहा के ध्वनि पूर्वक उच्चारण से यजमान द्वारा लंबी सांस छोड़ी जाती है, यानी जब आप हवन कुंड के सबसे नजदीक होते हैं तब (exhale) स्वांस छोड़ रहे होते हैं, (inhale) ग्रहण नहीं करते। जिससे यजमान के फेफड़े स्वस्थ होते हैं और किसी भी प्रकार से प्रभावित नहीं होते। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article

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