वैसे तो भारतीय दण्ड संहिता,1860 के अध्याय 7 में सैनिक एवं सेना से संबंधित अपराध के बारे में बताया गया है। ऐसे ही अध्याय 15 में धर्म एवं धार्मिक संबंधित अपराधों के बारे में बताया गया है, एवं दण्ड संहिता की धारा 153 क में वर्गों में शत्रुता एवं पूजा स्थल में घृणा संबंधित अपराध उत्पन्न करवाने का प्रावधान है। लेकिन भारतीय दण्ड संहिता संशोधन अधिनियम 1898 की धारा 6 द्वारा मूल धारा के स्थान पर प्रतिस्थापित की गई हैं। इस संशोधित धारा के अधीन किसी ऐसे कथन, अफवाह, या रिपोर्ट के प्रकाशन या परिचालन को दण्डनीय अपराध माना गया हैं।
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 505 की परिभाषा(सरल एवं संक्षिप्त शब्दों में):-
यदि कोई व्यक्ति ऐसे शब्द बोलता है अथवा प्रकाशित करवाता है अथवा प्रकाशित करता है जिनसे लोक शांति में बाधा उत्पन्न होने की संभावना हो:-
1.भारतीय सेना, वायु सेना, जल सेना में में विद्रोह होने की संभावना हो।
2. वर्गों, भाषाई, जाति, समुदाय, धर्मो, प्रादेशिक समूहों आदि में घृणा, शत्रुता, या भेदभाव उत्पन्न होने की संभावना हो।
3. कोई धार्मिक ,पूजा उपासना स्थल पर शत्रुता, घृणा आदि उत्पन्न होने की संभावना हो।
तब उस व्यक्ति के खिलाफ आईपीसी की धारा 505 के तहत प्रकरण दर्ज करके उसे दंडित किया जाएगा।
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 505 के अंतर्गत दण्ड का प्रावधान:-
इस धारा के अपराध किसी भी प्रकार से समझौता योग्य नहीं है, यह संज्ञेय एवं असंज्ञेय दोनो प्रकार के होते हैं (मध्यप्रदेश में संज्ञेय अपराध है सभी) एवं अजमानीय अपराध होते हैं, इनकी सुनवाई के अधिकार किसी भी मजिस्ट्रेट को होता है। इस धारा के अपराध की सजा को तीन भागों में बांटा गया है:-
1. सेनाओं में विद्रोह के लिए (असंज्ञेय अपराध) - तीन वर्ष की कारावास या जुर्माना या दोनो से दाण्डित किया जा सकता है।
2. झूठे आरोप या कथन द्वारा वर्गों, धर्मो आदि में शत्रुता उत्पन्न करवाना(संज्ञेय अपराध) - तीन वर्ष की कारावास या जुर्माना या दोनो से दाण्डित किया जा सकता है।
3. पूजा स्थल या धार्मिक स्थल के लिए झूठे कथन कहना(संज्ञेय अपराध):- पांच वर्ष की कारावास या जुर्माना मात्र से दाण्डित किया जा सकता है।
नोट:- अगर प्रकाशन किये गए कथन सत्य हैं, तब यह अपराध नहीं माना जाएगा।
क्या ऐसे कथन को प्रकाशन न करना संविधान के अनुच्छेद 19(1) क , व्यक्ति की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन है?
उधरणानुसार वाद:- केदारनाथ बनाम राज्य- वाद में उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया है कि इस धारा के प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 19(1) क, में वर्णित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संबंधी उपबन्धों का अतिलंघन नहीं करते है। अतः ये असंवैधानिक नहीं है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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