पुलिस को गिरफ्तारी का अधिकार किसने दिया, क्या आप जानते हैं - ASK CRPC

भारत एक लोकतांत्रिक देश है और स्वतंत्रता, भारत के आम नागरिक का अधिकार है। किसी भी व्यक्ति को उसकी इच्छा के विरुद्ध रोक कर रखना, उसकी स्वतंत्रता को बाधित करना माना जाता है और भारतीय दंड संहिता में इस गतिविधि को एक अपराध माना गया है। सरकार के ज्यादातर विभागों को कोई अधिकार नहीं है कि वह किसी आम नागरिक की स्वतंत्रता को बाधित कर सकें लेकिन पुलिस विभाग को यह अधिकार प्राप्त है। प्रश्न यह है कि कानून की वह कौन सी धारा है जिसने पुलिस को यह अधिकार दिया कि वह एक व्यक्ति की स्वतंत्रता को बाधित करते हुए उसे गिरफ्तार कर सके।

दण्ड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 46 की परिभाषा:-

यह धारा गिरफ्तारी के तरीक़े को निर्धारित करती हैं। संहिता के अनुसार विधिक भाव में गिरफ्तारी का अर्थ है विधि के अधिकार के अंतर्गत किसी व्यक्ति को अभिरक्षा में लेना ताकि उसे आपराधिक आरोपों का उत्तर देने के लिए रोक कर रखा जाए तथा संभावित अपराध करने से रोका (निवारित) जाए। अगर कोई व्यक्ति अपने आपको समर्पण करता है तो उसे हथकड़ी लगाने की आवश्यकता नहीं है।

जानिए धारा 46 के गिरफ्तारी संबंधी नियम:-

1. अगर कोई व्यक्ति अपने आपको गिरफ्तार होने से बचा रहा है तब पुलिस अधिकारी ऐसे व्यक्ति को अपनी अभिरक्षा में लेने के लिए उसे छुएगा या जबर्दस्ती गिरफ्तार कर सकता है लेकिन किसी महिला को गिरफ्तार करने के लिए महिला अधिकारी को होना चाहिए।
2. अगर कोई व्यक्ति गिरफ्तारी से बचने के लिए बल का प्रयोग करेगा तब पुलिस अधिकारी ऐसे सभी साधनों का उपयोग करेगा जो व्यक्ति की गिरफ्तारी के लिए जरूरी है।
3. अगर कोई व्यक्ति मृत्यु दंड या आजीवन कारावास से दंडनीय नहीं है। तब पुलिस अधिकारी को ऐसे व्यक्ति को मृत्यु करने का अधिकार नहीं होगा।
4. किसी महिला को सूर्यास्त के पश्चात और सूर्योदय से पहले गिरफ्तारी नहीं की जाएगी। लेकिन अगर कोई ऐसे परिस्थिति उत्पन्न होती है कि गिरफ्तारी जरूरी है तब महिला  पुलिस अधिकारी, प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष लिखित रिपोर्ट प्रस्तुत करके आदेश प्राप्त करेगी एवं आदेश के बाद महिला पुलिस अधिकारी स्त्री की गिरफ्तारी कर सकती है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)

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