कोरोना ; आनेवाली है अब टीकाकरण की बारी - Pratidin

अमेरिका आस्ट्रेलिया और अन्य कुछ देशों में कोरोना से बचाव का टीका लगना शुरू हो गया है उसके सुखद-दुखद परिणाम सामने आने लगे हैं | भारत में भी राज्य  टीकाकरण की अपनी योजनाये बनाने के लग गये है |  ये सब कितना कारगर होगा और टीकाकरण अभियान किस रूप में आगे बढे़गा, इसको लेकर अभी स्थिति साफ़ नहीं हुई है। इसका  एक कारण है कि देश के शिक्षाविदों , सरकार और सूचनाओं में अंतर है। टीकाकरण अभियान की रूपरेखा और इसके सफल संचालन की समय-सीमा को लेकर भी अलग-अलग खबरें आ रही हैं।

सबसे पहले जहाँ वैक्सीन दी गई वहां वो कैसा काम कर रही हैं| 2 ब्रिटेन में दवाओं व स्वास्थ्य सेवा उत्पादों की निगरानी करने वाली राष्ट्रीय एजेंसी ‘एमएचआरए’ ने तीसरे चरण के परीक्षण के आधार पर फाइजर और बायोएनटेक की एमआरएनए-आधारित कोरोना वैक्सीन को अपने यहां अस्थाई तौर पर इस्तेमाल की मंजूरी दे दी। इस तरह, वह दुनिया की पहली नियामक संस्था बन गई, जिसने ऐसी मंजूरी दी है।, एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा तैयार हो रहे टीके ने भी, जो कि चिम्पांजी से लिए गए वायरस के आधार पर बना है, परीक्षणों में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित कम से कम ५० प्रतिशत प्रभावशाली होने संबंधी बेंचमार्क से बेहतर नतीजा दिखाया है। इससे यह धारणा मजबूत हुई है कि स्पाइक प्रोटीन के आधार पर तैयार टीके कारगर होंगे।

हमारे देश भारत में फाइजर को स्वीकृति मिल भी जाती है, तब भी इसकी संभावना कम है कि यह वैक्सीन व्यापक रूप से इस्तेमाल की जा सकेगी। ऐसा इसलिए, क्योंकि इस वैक्सीन को ऋण -७० डिग्री सेल्सियस पर रखने की जरूरत होगी। आधुनिक टीके के भंडारण के लिए जरूरी ऋण -२०  डिग्री की सीमित क्षमता को देखते हुए संभावना इस बात की ज्यादा है कि भारत के राष्ट्रीय टीकाकरण अभियान में, और अन्य निम्न व मध्यम आय वाले देशों में भी, उन टीकों के विकल्प को चुना जाएगा, जिनको व्यापक रूप से उपलब्ध सुविधाओं के सहारे ही स्टोर किया जा सके। इसका साफ मतलब है कि अमूमन दो से आठ डिग्री सेल्सियस पर जिस टीके को रखा जा सकेगा, उसी का इस्तेमाल होगा।यह मंजूरी टीका खरीदने में समर्थ लोगों और उन नागरिकों के बीच एक विभेद पैदा कर देगी, जो टीकाकरण के लिए सरकार के भरोसे रहेंगे। हालांकि, कई टीकों को लेकर अपने यहां यही स्थिति है। लिहाजा तस्वीर साफ करने के लिए निजी क्षेत्र की भूमिका  कैसे न कैसे  महत्वपूर्ण हो जाएगी |

२०२१  के अंत तक वैश्विक तौर पर दो से चार अरब टीके तैयार होने की सम्भावना पर बात हो रही  हैं। मगर, हाल के एक आंकडे़ से उम्मीद ज्यादा बढ़ती है। दरअसल, ‘ड्यूक ग्लोबल हेल्थ इनोवेशन सेंटर’ ने कहा है कि नौ अरब से अधिक टीके खरीदने को लेकर चर्चाएं तेज हैं और अकेले भारत ने १.६ अरब टीके को लेकर प्रतिबद्धता दिखाई है।यदि  आंकड़ा सही है और २०२१  के अंत तक अपने यहां १.६ अरब टीके पहुंच जाएंगे, तब भी जरूरतमंदों तक इन टीकों को पहुंचाने की अपनी चुनौतियां हैं।

सब जानते हैं कि विश्व स्वास्थ्य संगठन टीकाकरण के लिए जरूरी आपूर्ति-शृंखला के प्रबंधन के छह ‘राइट्स’ की वकालत करता है- राइट प्रोडक्ट (सही उत्पाद), राइट क्वांटिटी (सही मात्रा), राइट कंडिशन (सही स्थिति), राइट प्लेस (सही जगह), राइट टाइम (सही वक्त) और राइट कॉस्ट (सही कीमत), यानी सही वैक्सीन, उसकी सही मात्रा, उसका परिवहन, भंडारण, वितरण, टीकाकरण आदि सभी में संतुलन की दरकार होती है। लिहाजा, रेफ्रिजरेटेड गाड़ियों की उपलब्धता, परिवहन की सुरक्षा, टीके की चोरी और नकली उत्पादों की मिलावट रोकने जैसे कई मोर्चों पर भी हमें तैयारी रखनी होगी।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
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