चोरी और लूट में क्या अंतर है, कब एक चोरी की घटना लूट में बदल जाती है, पढ़िए - ASK IPC

पिछले कुछ दिनों से हम आपको चोरी और उद्दापन से सम्बंधित अपराधों के बारे मे जानकारी दे रहे थे। अगर चोरी और उद्दापन गंभीर रूप धारण कर ले तो वह लूट हो जाती है। अर्थात कोई व्यक्ति चोरी के उद्देश्य से घर में घुसा है, और वह सम्पत्तिधारी को मार कर या गंभीर चोट पहुचा कर संपत्ति को ले जाता है तब वहाँ लूट का अपराध होगा न कि चोरी का। इसी प्रकार उद्दापन (भय) दिखाकर किसी व्यक्ति की संपत्ति को लेना उद्दापन का अपराध है लेकिन भय के डर से भी संपत्ति प्राप्त नहीं हुई और व्यक्ति की हत्या कर या गंभीर चोट कर संपत्ति को ले ली गई हो वहाँ उद्दापन लूट का अपराध होगा। आज के लेख में हम आपको लूट की ही परिभाषा को स्पष्ट करेंगे, लूट से संबंधित अपराधों को आगे के लेख में बताएगे।

भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 390 की परिभाषा:-

सभी प्रकार की लूट में या तो चोरी का गंभीर रुप होता है या उद्दापन (भय) का गंभीर रूप होता है। लूट के लिए निम्न तत्वों का होना आवश्यक है:-
1). किसी व्यक्ति को चोरी या भय उत्पन्न करते समय मृत्यु या गंभीर चोट का पहुचना।
2). रोक डालकर या हिंसा, बल आदि का प्रयोग करके चोरी करना या जबर्दस्ती संपत्ति हड़पना।
उपर्युक्त तत्वों का होना लूट का अपराध होता है।

*उधरणानुसार वाद:- (1)*. हजरत शेख बनाम सम्राट- दो आरोपी जब एक आम के पेड़ से आम चुरा रहे थे, रखवाला अचानक आ धमका अतः आरोपियों में से एक ने उसे लाठी मारकर बेहोश कर दिया। न्यायालय ने आरोपियों को लूट का दोषी ठहराया।

*(2). टिकई वाद:-*  एक आरोपी ने एक महिला के नाक से नथुनी खिंची जिसके कारण महिला की नाक का ऊपरी भाग फट गया और चोट के कारण रक्त बहने लगा। न्यायालय ने यहां पर आरोपी को लूट का अपराध ठहराया। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)

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