सुप्रीम कोर्ट ने दिखाया सही रास्ता - Pratidin

संभव है, कुछ लोग शाहीन बाग आंदोलन पर आये फैसले और सुप्रीम कोर्ट तल्ख टिप्पणी से असहमत हो | देश में एक वर्ग ने हमेशा ऐसी असहमति का संकेत दिया है | एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि “सार्वजनिक स्थल पर अनिश्चितकाल तक प्रदर्शन करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि “लोकतंत्र और असहमति साथ-साथ चल सकते हैं, मगर इससे सार्वजनिक जीवन बाधित नहीं किया जा सकता।“ भारत में तो इन दिनों विरोध का प्राथमिक तरीका, सार्वजनिक जीवन को ठप्प करना होता जा रहा है | 

देश का संविधान असहमति के लिए विरोध प्रकट करने का अधिकार तो देता है, लेकिन लोगों को अपने कर्तव्य भी याद रखने चाहिए।जो सारे राजनीतिक दल ताक़ पर रख देते हैं | सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में शाहीन बाग में जो सौ से अधिक दिनों तक धरना-प्रदर्शन चला था, उसे लेकर आया है | इस आन्दोलन के चलते कालिंदी कुंज के पास दिल्ली से नोएडा को जोड़ने वाली सड़क महीनों बंद रही थी। आसपास का कारोबार ठप रहा और स्कूली बच्चों को भी कई किलोमीटर घूमकर स्कूल के लिए जाना पड़ता था। इस बाबत सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई थीं। इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने जनता की परेशानियों को देखते हुए पहले संजय हेगड़े, साधना रामचंद्रन और पूर्व नौकरशाह हबीबुल्लाह को मध्यस्थ नियुक्त किया था, जिनका दायित्व प्रदर्शनकारियों को सार्वजनिक स्थल बाधित न करने और कहीं और जाकर प्रदर्शन करने के लिए समझाना था। लेकिन प्रदर्शनकारी टस से मस न हुए। मध्यस्थों ने फरवरी में सीलबंद लिफाफे में कोर्ट को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी।

जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय बेंच जिसमें जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस कृष्ण मुरारी भी शामिल थे ने अपने मार्गदर्शक फैसले में कहा कि विरोध जताने के लिए सार्वजनिक स्थान व सड़क को बंद नहीं किया जा सकता। सरकारी अधिकारियों को इस तरह के अवरोधों को समय रहते हटा देना चाहिए था। उन्हें न्यायालय के आदेशों की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए थी। साथ ही कहा कि नागरिकों को धरना प्रदर्शन का अधिकार तो है लेकिन अंग्रेजी राज के दौरान के विरोध के तौर-तरीकों को अब नहीं दोहराया जा सकता।

याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि कोई आंदोलन निरंकुश व्यवहार से असीमित समय के लिए नहीं चलाया जा सकता। शाहीन बाग और देश में आये दिन होने वाले धरना-प्रदर्शनों के बाबत शीर्ष अदालत की नसीहत थी कि प्रदर्शन निश्चित जगह पर ही होने चाहिए, ताकि आम जन-जनजीवन बाधित न हो। यह भी कि अधिकारियों को समय रहते सार्वजनिक स्थानों को खाली रखना सुनिश्चित करना चाहिए।

सारे देश में विरोध का अजीबोगरीब तरीका होता जा रहा है, आये दिन होने वाले प्रदर्शनों व सड़क जाम से जरूरी काम के लिए निकले लोगों और उपचार के लिए जाने वाले मरीजों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है। यदा-कदा जाम में फंसकर गंभीर बीमारों के मरने की खबरें तक आती रही हैं। यही वजह है कि कोर्ट को कहना पड़ा कि विरोध-प्रदर्शन के अधिकार और लोगों के आवागमन के अधिकार में संतुलन जरूरी है। अदालत का मानना था कि हर नागरिक को शांतिपूर्ण ढंग से अपनी असहमति के अधिकार को अभिव्यक्त करने का तो हक है, मगर यह आजादी निरंकुश कदापि नहीं हो सकती।

अदालत का कहना था शासन-प्रशासन यह सुनिश्चित करे कि भविष्य में विरोध प्रदर्शनों को लेकर मनमर्जी न हो सके। यह अधिकारियों को देखना है कि जनहित में क्या रणनीति अपनानी है। साथ ही कोर्ट के फैसले का इंतजार किये बिना जनहित में तुरंत फैसला लिया जाना चाहिए। अधिकारियों को समय रहते अपने दायित्वों का निर्वहन का मार्ग दिखाकर शीर्ष अदालत ने आम नागरिकों की दिक्कतों को दूर करने की राह दिखायी है।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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