भोपाल। सातवें वेतनमान के आधार पर प्रदेश के कर्मचारियों के वेतनमान में लगभग 14% की वृद्धि हुई थी जो छटे वेतनमान के 40% एवं पिछले सभी वेतनमानों के मुकाबले ऐतिहासिक रूप से काफी कम थी। मप्र तृतीय वर्ग शास कर्म संघ के प्रांताध्यक्ष श्री प्रमोद तिवारी एवं प्रांतीय उपाध्यक्ष कन्हैयालाल लक्षकार ने कहा कि सरकार नुकसान पहुंचाने वाले आदेश धारावाहिक के समान निकाल रही है, ऐसी तत्परता कभी फायदे वाले आदेश में नहीं दिखाई दी। यहां तक की पदनाम जैसी अनार्थिक मांग केवल घोषणा तक सिमित है।
विडंबना देखिए सातवें वेतनमान के आधार पर अन्य प्रासंगिक भत्ते (एचआर, यात्रा भत्ता) प्रदेश के कर्मचारियों को भुगतान करना तो दूर सातवें वेतनमान के आधार पर की गई 14% वृद्धि के मुकाबले चालू वेतन से जुलाई 2021 तक डीए डीआर, वार्षिक वेतनवृद्धि एवं एरियर पर रोक, जिसमें जुलाई 2019 से देय पाँच फीसदी डीए डीआर आदेश के बावजूद रोका जाना ऐसा ही है-"जैसे अपमानित करते हुए परोसी गई थाली सामने से उठा ली हो।" वार्षिक वेतनवृद्धि एवं देय एरियर की अंतिम किश्त के साथ आगामी डीए डीआर पर प्रतिबंध लगाकर लगभग 30% की कटौती कर दी है। इसका आकलन सोने चांदी की कीमतों से देखें तो यह कटौती 50% तक है।
इससे कर्मचारी दो वेतनमान पीछे पांचवें वेतनमान के समकक्ष पहुँच गये है। सरकार का रवैया "नुकसान वास्तविक व लाभ काल्पनिक" कर्मचारियों के लिये यह एतिहासिक व अपूरणीय क्षति है। यह कर्मचारियों के प्रति आर्थिक क्रूरता, निष्ठुरता की पराकाष्ठा होकर "पेट पर लात मारने के समान है।" इससे कर्मचारियों में भारी नाराजगी व आक्रोश व्याप्त हैं। इतिहास गवाह है कि कर्मचारियों को नुकसान पहुंचाने वाली सरकारों को सत्ता से विमुख होना पड़ा है।आगामी समय में कुपित व उद्वेलित कर्मचारियों के लिये इसका विरोध करते हुए सड़कों पर उतरकर आंदोलन करना ही अंतिम विकल्प बचा है! हालात देखते हुए कोविड-19 कोरोना वायरस के साथ ही जीना है, बढ़ते संक्रमण के कारण इसकी निकट भविष्य में विदाई मुमकिन नहीं लग रही है!
इसे सरकार ने एक सुनहरा अवसर मानकर कर्मचारियों के आर्थिक हितों पर सीधे चोंट पहुँचाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है, लाभ की बात काल्पनिक कही जा रही है, जो कुत्सित प्रयास है। आर्थिक बेहतरी के लिए सरकार को एनपीएस हटाकर ओपीएस लागू करना सही विकल्प है। एनपीएस में प्रतिमाह सरकार को कर्मचारियों के वेतन की 10% राशि अंशदान के रूप में जमा करना पड़ रही है। ओपीएस लागू करने से कर्मचारियों का 10% अरबों-खरबों की बड़ी रकम का हिस्सा जीपीएफ में बदल कर अपने हिस्से की राशि बचाई जा सकती है। यह सरकार की सेहत के लिए आक्सीजन का काम करेगी। कर्मचारी वर्ग किसी भी राजनीतिक दल का पीट्ठू नहीं है। आने वाले समय में कर्मचारियों के लिए मजबूरन अपने पेट की लड़ाई के लिए सरकार से दो दो हाथ करना होंगे! जिसकी शुरूआत आगामी 24 अगस्त से आंदोलन के रूप में होने जा रही है। विधानसभा उप चुनाव के पूर्व कर्मचारियों के आर्थिक हितों की अनदेखी राजनीतिक लाभ का सौदा नहीं हो सकता है। समय रहते पुनः समीक्षा कर कर्मचारियों के आर्थिक नुकसान की भरपाई की जाना चाहिए।
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