MP GOVT कर्मचारियों के पदनाम परिवर्तन की फाइल पर फैसला करने में क्या समस्या है: कर्मचारी संघ

भोपाल। प्रदेश में योग्यताधारी शिक्षकों सहित अन्य विभागों में उच्च पद के समकक्ष क्रमोन्नति, समयमान वेतनमान प्राप्त कर्मचारियों को अनार्थिक मांग "पदनाम" की माननीय मुख्यमंत्री द्वारा मंचीय घोषणा अटक-भटक कर रह गई है। मंजिल से दूर मंत्रालय में मंथर गति से टेबल दर टेबल "पदनाम" फाइलें चलना बदस्तूर जारी हैं, लेकिन आदेश जारी नहीं हो पा रहे है। 

मप्र तृतीय वर्ग शास कर्म संघ के प्रांताध्यक्ष श्री प्रमोद तिवारी, उपाध्यक्ष कन्हैयालाल लक्षकार एवं सचिव जगमोहन गुप्ता ने संयुक्त प्रेस नोट में बताया कि कर्मचारियों की "पदोन्नति" प्रकरण "आरक्षण" के पेंच से माननीय "सर्वोच्च न्यायालय" में विगत वर्षो से लंबित है, इस पर मप्र सरकार लगभग छः करोड़ खर्च करने के बाद भी न्याय की प्रत्याशा में है, लेकिन निकट भविष्य में न्याय मिलना संभव प्रतित नहीं हो रहा है। इस अवधि में लगभग एक लाख शिक्षक, कर्मचारी नियुक्ति के 30-40 साल बाद उसी पद से बगैर पदोन्नति के सेवानिवृत्त हो चुके हैं, हजारों शिक्षक, कर्मचारियों के  सेवानिवृत होने का सिलसिला बदस्तूर जारी है। इसके फोरी तौर पर समाधान के लिए "अनार्थिक मांग पदनाम" एक समाधान है। 

यह लॉलीपॉप व झुनझुना सिद्ध हो रहा है; इस मुद्दे में टालमटूल चिंताजनक है। आश्चर्य की बात यह है कि "पदनाम" के मामले में अपना स्पष्ट मत रखते हुए माननीय मुख्यमंत्री महोदय श्रीमान शिवराजसिंह जी चौहान ने 05 व 23 सितम्बर 2017 को शिक्षकों के लिए मंचीय घोषणा की थी। विडम्बना है कि कई माननीयों द्वारा भी इसके पक्ष में घोषणा कर प्रयास के आश्वासन सार्वजनिक मंचो से दिये जा चुके है। 

दिनांक 08 सितम्बर 2019 को तात्कालिक माननीय विधायक द्वय श्रीमान हरदीपसिंह जी डंग-सुवासरा(कांग्रेस) अब निवृत्तमान भाजपा सदस्य एवं श्रीमान अनिरूद्ध माधव जी मारू(भाजपा) मनासा ने "मप्र तृतीय वर्ग शास कर्म संघ" के संपन्न "संभागीय सम्मेलन" मनासा में  एक ही मंच से घोषणा कर प्रयास के आश्वासन दिये थे। घोषणा का पालन "माननीय मुख्यमंत्री जी" अपने उस कार्यकाल में व सत्ता परिवर्तन के बाद तात्कालीन मुख्यमंत्री माननीय श्री कमलनाथ जी अपने "वचनपत्र" के पालन में पूरा नहीं करवा पाये। संयोग से फिर माननीय "श्रीमान शिवराजसिंह जी चौहान" मुख्यमंत्री पद पर काबिज हैं, लेकिन "पदनाम" अभी भी शिक्षकों, कर्मचारियों के सामने मुँह बाये खड़ा हैं। 

अब शासन-प्रशासन की नूराकुश्ती समाप्त कर "उप चुनाव की आचार संहिता" लागू होने के पूर्व तत्काल इसका समाधान करते हुए आदेश होना चाहिए। यदि ऐसा तकनीकी पेंच के चलते संभव नहीं हो पा रहा है तो जवादारों द्वारा सार्वजनिक रूप से स्वीकारोक्ति कर स्पष्ट किया जाना चाहिए की असली रूकावट कहाँ है? इसका सर्वोच्च प्राथमिकता से समाधान निकाला जावे। हजारों शिक्षक, कर्मचारी प्रतिमाह बगैर पदोन्नति के सेवानिवृत्त हो रहे है; इससे हताश,निराश लाखों शिक्षकों, कर्मचारियों में भारी नाराजगी व आक्रोश व्याप्त होकर मनोबल कमजोर हुआ है। वहीं स्वस्थ लोकतंत्र में माननीयों एवं मुख्यमंत्री जी की घोषणा पालन की उपेक्षा चिन्ताजनक व अक्षम्य हैं। यह समझ से परे हैं कि अफसर बड़े है या मंत्री!

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