भ्रष्टाचार की जांच में गड़बड़ी के आरोपी डिप्टी कमिश्नर को जमानत नहीं / GWALIOR NEWS

ग्वालियर। नगर निगम में पार्क विभाग में फर्जी टेंडर से लाखों रुपये का भुगतान होने के मामले की जांच के लिये नियुक्त उपायुक्त देवेन्द्र चौहान ने जांच में ही गड़बड़ी कर दी। इस आधार पर न्यायालय ने उन्हें अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया। 

अपर जिला न्यायाधीश रामजी गुप्ता ने कहा कि इस मामले में सह अभियुक्तों को उच्च न्यायालय से अग्रिम जमानत का लाभ मिला है, लेकिन आरोपी देवेन्द्र चौहान निवासी डी-5 कुशल नगर ग्वालियर का मामला सभी सहअभियुक्तों से अलग है, इसलिए उसे अग्रिम जमानत का लाभ नहीं दिया जा सकता है। 

न्यायालय ने यह पाया कि जांच अधिकारी ने इस मामले की जांच सही तरीके से नहीं की इस कारण फर्जी टेंडर का नगर निगम को भुगतान करना पड़ा। जांच अधिकारी ने इस मामले के साक्ष्यों को जुटाना भी उचित नहीं समझा। इससे यह प्रमाणित होता है कि जांच अधिकारी स्वयं ही फर्जी बिलों के भुगतान कराए जाने का इच्छुक था। यही कारण था कि जिसके खिलाफ जांच की गई उसे निर्दोष बताया गया। 

वहीं इस मामले में एक अन्य अधिकारी पार्क अधीक्षक मुकेश बंसल ने भी तथ्यों को छुपाया था और फर्जी फाइल के भुगतान की अनुशंसा की थी। हाईकोर्ट ने इस मामले में निगम के अधिकारी तत्कालीन पार्क अधीक्षक मुकेश बंसल, पूर्व अधिकारी दिनेश बाथम, राजेन्द्र कुमार श्रीवास्तव, दीपक सोनी एवं हरिकिशन शाक्यवार को सशर्त जमानत दी जा चुकी है। 

ठेकेदार महेन्द्र गुप्ता का कहना था कि यह बिल उसके नहीं है। बिल भुगतान के लिए चेक तैयार कर हरीकिशन शाक्यवार ने तत्कालीन अपर आयुक्त संदीप माकिन के समक्ष प्रस्तुत किए। उन्होंने नोटशीट बनाकर कमिश्नर के पास भेज दिया। टेंडर में गडबडी का मामला पकड़ में आने पर राजू नागर के खिलाफ विभागीय जांच प्रारंभ की गई। इसमें देवेन्द्र सिंह चौहान को जांच अधिकारी बनाया गया। इस मामले में पार्क अधीक्षक मुकेश बंसल ने महेन्द्र गुप्ता को साक्ष्य के लिए प्रस्तुत नहीं किया और न ही कोई साक्ष्य प्रस्तुत की। इस कारण राजू सेंगर के खिलाफ जांच प्रमाणित नहीं हो पाई। इस आधार पर तत्कालीन आयुक्त ने नियमानुसार भुगतान के निदेश दिए। इस पर तत्कालीन सहायक लेखाअधिकारी विनोद शर्मा ने फर्जी टेंडर के आधार पर किए कार्य की फाइल को भुगतान के लिए भेज दिया। शिकायत के बाद सभी आरोपियों के खिलाफ  भादसं की धारा 420, 467, 468, 471 एवं 120 बी के तहत मामला दर्ज किया गया। 

नगर निगम के कई अधिकारियों की जांच लोकायुक्त में 

ग्वालियर। नगर निगम में टेंडर को फर्जी तरीके से स्वीकृत कराते हुए फर्जी भुगतान के मामले कोई नई बात नहीं है। यहां के कुछ अधिकारियों ने ठेकेदारों के साथ मिलकर फर्जी तरीके से निगम के खजाने को करोड़ों रुपये की चपत लगाई है। वर्तमान में निगमायुक्त ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाते हुए करीब 8 करोड़ का टेंडर पास कर दिया है। इससे निगम में हडक़ंप मचा हुआ है। इसी तरह इंजीनियरिंग शाखा व भवन शाखा के अनेक अधिकारियों की शिकायतें भी लोकायुक्त व आर्थिक अपराध शाखा में जांच चल रही है। सर्वाधिक शिकायतें इंजीनियंरिंग शाखा के उन अधिकारियों की हैं जो लंबे समय से भवन शाखा में नौकरी कर रहे हैं। 

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