एक दिन पढ़ाने की नौटंकी नही, इसे आन्दोलन बनाएं

राकेश दुबे@प्रतिदिन। मध्यप्रदेश के मुख्मंत्री शिवराज सिंह और उनके आला अफसर एक दिन के लिए किसी अपने मनचाहे स्कूल में जाकर बच्चों को कुछ पढाने की जुगत में है। इन सबने अपनी सुविधा से स्कूल खोज लिए है। राजधानी भोपाल के स्कूल। स्कूल में तैनात उन शिक्षकों की मुसीबत हो गई है, जिन्हें अब इस बहाने कुछ काम करना पढ़ रहा है। वैसे भोपाल राजधानी के स्कूल में नौकरी के लिए किसी बड़े आदमी के परिवार से रिश्तेदारी, जान पहचान जरूरी है। इस श्रेणी के लोग स्कूल से कालेज तक मौजूद हैं। ये अपने रसूख के कारण सालों से भोपाल में बने हुए हैं। इनके कर्तव्यों में वेतन प्राप्ति के अतिरिक्त कुछ भी शामिल नहीं है। ऐसे लोग अब इस बात के लिए चिंतित है की वे अपने प्रदर्शन को उस दिन कैसे प्रदर्शित करें, जब कोई वीआईपी उनके स्कूल में कुछ घंटे के लिए अवतरित हो।

इस सारी नौटंकी में किसी को यह याद नहीं है की प्रदेश में के गावों में स्कूल नहीं है और कई स्कूलों के पास भवन नहीं है तो कई स्कूलों में शिक्षक नहीं है। मध्यप्रदेश नही पूरे देश का  दुर्भाग्य है की शिक्षा के अधिकार के नाम पर देश में कई नौटंकी हुई और हो रही है। समानता कही  नही है।

एक तरफ भारत में दून स्‍कूल, सिंधिया स्‍कूल, मायो कॉलेज, इकोल मोंडिएल वर्ल्‍ड स्‍कूल, वेलहम ब्‍वॉयज स्‍कूल, वुडस्‍टॉक स्‍कूल है। जिनमें एक छात्र की फीस किसी सरकारी स्कूल के वार्षिक बजट से ज्यादा है। दूसरी और राजधानी भोपाल से सटे गाँव में ही शिक्षक विहीन स्कूल मौजूद हैं। देश में तो ऐसे स्कूलों की संख्या हजारों में होगी। इस खाई को ऐसी नौटंकी और चौड़ा कर रही है।

कुछ सुधार शौक से होते हैं, कुछ को मिशन बनाना होता है और कुछ के लिए आन्दोलन चलाना होता है। अभी स्कूल जाने के नाम पर वहां एक घंटा बिता कर वाहवाही लूटने के स्थान पर सम्पूर्ण देश में शिक्षा की समानता के लिए कुछ ठोस काम कर बुनियादी फर्क को कम किया जा सकता है। मध्यप्रदेश में हो रहे इस प्रहसन को मिशन और आन्दोलन बनाने से किसी ने रोका नही है। आपके पास साधनों की कमी नहीं है। नौटंकी छोडिये, कुछ ठोस कीजिये, यही राष्ट्र सेवा है।
 श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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