
इस सारी नौटंकी में किसी को यह याद नहीं है की प्रदेश में के गावों में स्कूल नहीं है और कई स्कूलों के पास भवन नहीं है तो कई स्कूलों में शिक्षक नहीं है। मध्यप्रदेश नही पूरे देश का दुर्भाग्य है की शिक्षा के अधिकार के नाम पर देश में कई नौटंकी हुई और हो रही है। समानता कही नही है।
एक तरफ भारत में दून स्कूल, सिंधिया स्कूल, मायो कॉलेज, इकोल मोंडिएल वर्ल्ड स्कूल, वेलहम ब्वॉयज स्कूल, वुडस्टॉक स्कूल है। जिनमें एक छात्र की फीस किसी सरकारी स्कूल के वार्षिक बजट से ज्यादा है। दूसरी और राजधानी भोपाल से सटे गाँव में ही शिक्षक विहीन स्कूल मौजूद हैं। देश में तो ऐसे स्कूलों की संख्या हजारों में होगी। इस खाई को ऐसी नौटंकी और चौड़ा कर रही है।
कुछ सुधार शौक से होते हैं, कुछ को मिशन बनाना होता है और कुछ के लिए आन्दोलन चलाना होता है। अभी स्कूल जाने के नाम पर वहां एक घंटा बिता कर वाहवाही लूटने के स्थान पर सम्पूर्ण देश में शिक्षा की समानता के लिए कुछ ठोस काम कर बुनियादी फर्क को कम किया जा सकता है। मध्यप्रदेश में हो रहे इस प्रहसन को मिशन और आन्दोलन बनाने से किसी ने रोका नही है। आपके पास साधनों की कमी नहीं है। नौटंकी छोडिये, कुछ ठोस कीजिये, यही राष्ट्र सेवा है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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