और शुरू हो गया कर सुधार का पहला कदम

राकेश दुबे@प्रतिदिन। इसे कुछ भी कहें ,वस्तु व सेवा कर यानी जीएसटी की ओर जिस तरह से देश कदम बढ़ा रहा है, वह काफी उम्मीद बंधाता है। यह उम्मीद सिर्फ देश के कर सुधारों को लेकर नहीं, बल्कि कई राजनीतिक मोर्चों पर भी बंधती है। केंद्र और राज्यों के आपसी समन्वय से एक नई कर व्यवस्था पर सहमतियों का लगातार आगे बढ़ते जाना भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक नए युग की शुरुआत कर सकता है। केंद्र के अलग, और राज्य के अलग। अलग-अलग दरें, जिनके चलते कारोबार करने वालों की उलझनें हर कदम पर बढ़ जाती थीं। साथ ही, इसकी जटिलताओं में कर चोरी की तमाम गुंजाइशें बनती-बिगड़ती रहती थीं। सरकारों के पास पूरा राजस्व नहीं आ पाता था। हां, कुछ लोगों की जेबें जरूर भर जाती थीं। जीएसटी परिषद् की बैठक में जिस तरह इस कर की दरों पर सहमति बनी है, वह बताता है कि कराधान का वह पुराना दौर अब अतीत की बात होने जा रहा है।

टैक्स के चार स्लैब बनने का अर्थ यह भी है कि तमाम जटिलताएं अब खत्म हो जाएंगी। यह एक साथ कई तरह से कारगर हो सकता है। एक तो इससे जटिलताएं खत्म होंगी और पारदर्शिता आएगी। कराधान व्यवस्था से भ्रष्टाचार कम होने की उम्मीद भी बंध रही है। साथ ही, यह भी कहा जा रहा है कि कुछ जरूरी चीजें लोगों को सस्ती मिलेंगी, बेशक सेवाएं और कुछ चीजें महंगी भी हो जाएंगी।यह सहमति इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि अभी दो-तीन दिन पहले तक लग रहा था कि सहमति बनाना इतना आसान नहीं होगा। पश्चिम बंगाल के वित्त मंत्री अमित मित्रा ने जिस तरह से केंद्र सरकार के खिलाफ सार्वजनिक बयान दिए थे, उससे लगने लगा था कि मामला कुछ समय के लिए खटाई में भी पड़ सकता है। उनका कहना था कि किस राज्य में कितने करदाता हैं, यह जानकारी केंद्र सरकार राज्यों से छिपा रही है। यह एक गंभीर किस्म का आरोप था और इससे लगने लगा था कि मामला अटक सकता है। लेकिन इसके बावजूद दरों पर सहमति बन जाना बताता है कि राज्य भी अब जीएसटी की सफलता में अपना भविष्य देखने लग गए हैं।

शुरू में कई राज्य कह रहे थे कि इससे उनके अधिकारों पर कुठाराघात तो होगा ही, उनके संसाधन भी कम हो जाएंगे।एक डर यह भी था कि केंद्र सरकार राज्यों को उनका हिस्सा देने में भेदभाव कर सकती है। लेकिन अच्छी बात यह है कि इस पर चली लंबी बहसों के बाद राजस्व की हिस्सेदारी का फॉर्मूला तय करने में केंद्र और राज्य सफल रहे। जाहिर है कि इसके आगे के मतभेद अब उतनी बड़ी बात नहीं हैं।मतभेद राज्यों और केंद्र के बीच में ही नहीं थे, राजनीतिक दलों के बीच भी थे। इसलिए इस पर काफी लंबा विवाद भी चला था। यह कहा जाने लगा था कि जब तक यूपीए की सरकार थी, तब तक भाजपा जीएसटी का विरोध करती थी और अब जब केंद्र में भाजपा की सरकार है, तो यूपीए और खासकर कांग्रेस पार्टी इसका विरोध कर रही है।

इस तरह के विरोध लोकतंत्र में होते ही हैं, लेकिन अच्छी बात यह है कि अंत में सब मिलकर एक नतीजे पर पहुंचे और जीएसटी का रास्ता साफ हो गया। हम यह कहने की स्थिति में आ गए कि हमारे कर सुधार राष्ट्रीय आम सहमति से तैयार हुए हैं। उम्मीद है कि यह सहमति संसद के आगामी शरद सत्र में भी दिखाई देगी, जब इस प्रस्ताव को कानूनी रूप देने के कुछ और विधेयक संसद में पेश किए जाएंगे। सब कुछ ठीक रहा, तो अगले वित्त वर्ष से देश एक नई कर व्यवस्था में प्रवेश करेगा। 
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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