शिवराज सरकार को शायद पता था, कमलनाथ सिर्फ ट्वीट करेंगे

मध्यप्रदेश में 4 दिन के लिए निर्धारित किया गया विधानसभा का मानसून सत्र मात्र 4 घंटे में समाप्त कर दिया गया। शायद सरकार को पता था की कमलनाथ इस डिसीजन के खिलाफ कुछ खास नहीं कर पाएंगे, सिर्फ ट्वीट करेंगे। हुआ भी ऐसा ही है।

कमलनाथ ने आरोप लगाया या सफाई पेश की 

कमलनाथ ने आज ट्वीट करके बताया कि हमारे विधायकों ने बाढ़ की आपदा, राहत को लेकर, महंगाई पर, किसानो की समस्याओं पर, महिला अत्याचार पर, बेरोज़गारी पर, प्रदेश में ज़हरीली शराब से निरंतर हो रही मौतों पर, कोरोना पर, बढ़ते अपराधों पर, ओबीसी वर्ग के आरक्षण, आदिवासी वर्ग के सम्मान सहित कई विषयों पर इस सत्र में प्रश्न भी लगाये थे, ध्यानआकर्षण से लेकर स्थगन प्रस्ताव के माध्यम से भी कई जनहितैषी मुद्दों को उठाने की तैयारी भी की थी, लेकिन शिवराज सरकार चाहती ही नही थी की जनहित के इन मुद्दों पर चर्चा हो इसीलिये पहले ही सत्र का समय कम रखा और बाद में उसे 4 घंटे में ही समाप्त कर दिया ? 

मध्यप्रदेश में विपक्ष कमजोर क्यों है 

विधानसभा के मानसून सत्र की इस प्रकार समाप्ति की बुद्धिजीवी वर्ग में निंदा की जा रही है। सत्तारूढ़ पार्टी हमेशा सवालों से बचना चाहती है, सदन में विपक्षी दल की जिम्मेदारी होती है कि वह सत्ता पक्ष से नियमों का पालन करवा दें।

मध्यप्रदेश में विधानसभा के मानसून सत्र के पहले दिन (विश्व आदिवासी दिवस के दिन) कांग्रेस पार्टी के विधायकों ने सार्वजनिक अवकाश की मांग को लेकर हंगामा किया और सदन से वॉकआउट कर दिया। इसके तत्काल बाद नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ पीसीसी में आयोजित एक कार्यक्रम में शामिल हुए। कार्यक्रम पूर्व निर्धारित था। यानी वॉकआउट भी पूर्व निर्धारित था? कांग्रेस पार्टी के एक कार्यक्रम के कारण विधानसभा का पहले दिन कोई काम नहीं हुआ। 

मानसून सत्र के दूसरे दिन सरकार पूरी तैयारी से आई। कांग्रेस पार्टी के विधायकों ने हंगामा किया और सरकार ने शोर-शराबे के बीच जरूरी कामकाज पूर्ण कर लिए। कुछ नियम कानूनों में बिना बहस के संशोधन हो गया। विधानसभा अध्यक्ष ने मानसून सत्र की समाप्ति की घोषणा कर दी और कमलनाथ सहित कांग्रेस पार्टी के विधायक सदन से बाहर चले गए। विपक्ष में यदि भाजपा होती तो उसके विधायक वापस नहीं जाते बल्कि राजधानी की सड़कों पर नजर आते। इतना शोर मचाते, कि गांव-गांव तक जनता को पता चल जाता उसके साथ अन्याय हो गया है।

कमलनाथ की कमजोरियों का फायदा उठाती है शिवराज सिंह सरकार

यदि कमलनाथ को लोकतंत्र और जनता की चिंता थी तो उसी समय सड़क पर उतर आना चाहिए था। कितना अच्छा होता कि कमलनाथ सत्र को नियमित चलाए रखने के लिए गांधी प्रतिमा के नीचे आमरण अनशन पर बैठ जाते। फिर देखते कि कैसे सरकार पर दबाव निर्मित नहीं होता। क्या सत्ता पक्ष, कमलनाथ जैसे नेता को आमरण अनशन के दौरान एंबुलेंस में जाते हुए देखने की हिम्मत कर पाता, लेकिन कमलनाथ ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने अनशन पर बैठने के बजाय अपनी कार में बैठना पसंद किया। फिर उनके स्टाफ ने ट्वीट करना शुरू कर दिया। 

कमलनाथ अक्सर कहते हैं कि मुंह चलाने से सरकार नहीं चलती, यही प्रश्न शब्द बदलकर उनके सामने प्रस्तुत होता है। ट्वीट करने से विपक्षी पार्टी कैसे चलाई जा सकती है। राउंड टेबल मीटिंग से चुनाव कैसे जीते जा सकते हैं। यदि पार्टी का चेहरा बनना है तो सड़क पर उतरना जरूरी है। यदि क्षमता नहीं है तो लीडरशिप छोड़ देनी चाहिए, कमलनाथ को मार्गदर्शक बनकर युवाओं को आशीर्वाद देना चाहिए। ✒ उपदेश अवस्थी

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