समर्थक उपद्रव करें तो किस धारा के तहत नेता को जिम्मेदार माना जाता है, पढ़िए- LEARN CrPC SECTION 106

समर्थकों के कारण ही कोई व्यक्ति, आम आदमी से नेता बनता है लेकिन नेता बनने के बाद उसे कई बार यह विश्वास होने लगता है कि समर्थकों की शक्ति ही देश की सबसे बड़ी शक्ति है। कई बार जब वो किसी कानूनी प्रक्रिया का पालन कर रहा होता है तब उसके समर्थक उपद्रव करते हैं। दण्ड प्रक्रिया संहिता का अध्याय- 8 शांति कायम रखने के लिए नेता को पाबंद करती है। आइए जानते हैं सीआरपीसी की किस धारा के तहत समर्थकों द्वारा उपद्रव करने पर नेता की सजा बढ़ जाती है। 

अक्सर हम देखते हैं कि किसी अपराधी को ऐसे मामले में दोषसिद्ध ठहराया जाता है जिसने किसी प्रकार से वर्गों या समुदाय के लोगों मे शत्रुता उत्पन्न करवा दी है एवं अपराधी के अनुयायी अपराधी को सजा या न्यायालय के दण्डादेश के समय शान्ति भंग करने का उद्देश्य रखते हैं। तब दण्ड प्रक्रिया संहिता का अध्याय- 8 शांति कायम रखने के लिए अपराधी से जमानत के लिए एक बंधपत्र ले सकता है।

दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 106 की परिभाषा (सरल एवं संक्षिप्त शब्दों में):- 【दोषसिद्ध पर शान्ति कायम रखने के लिए प्रतिभूति (सिक्योरिटी)】-

अगर किसी अपराधी को भारतीय दण्ड संहिता के अधीन धारा 153 क (वर्गों में शत्रुता उत्पन्न करवाना, पूजा स्थल आदि के स्थानों में शत्रुता उत्पन्न करवाना), धारा 153-ख (राष्ट्रीय एकता पर गलत प्रभाव वाले लांछन लगाना), धारा 154 (कोई भी बल्वे की सूचना न देकर बल्वा करना), आपराधिक धमकी, रिष्टि करना, या कोई भी ऐसे अपराध का अपराधी जिसने  कोई शान्ति या लोक शान्ति भंग की हो। 

सत्र न्यायालय या प्रथम वर्ग का मजिस्ट्रेट ऐसे अपराधी से एक बंधपत्र पर जमानत दे सकता है कि अगर उसके द्वारा दण्डादेश के समय को लोक शांति भंग होती है तो इसकी जिम्मेदारी स्वयं अपराधी व्यक्ति की होगी जमानत में तीन वर्ष से कम अतिरिक्त सजा या कोई रकम जमा की सिक्योरिटी जमा हो सकती है।

अगर न्यायालय का दण्डादेश के बाद किसी भी प्रकार की शांति भंग नहीं होती है तब न्यायालय का आदेश शून्य हो जाएगा अर्थात जमानत वापस कर दी जाएगी। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)

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