निशुल्क चिकित्सा भारतीय नागरिक का संवैधानिक मौलिक अधिकार है या नहीं, जानिए Constitution of india

आज का लेख उन गरीब, निर्धन लोगो के लिए महत्वपूर्ण है जो पैसों के अभाव में आधुनिक चिकित्सा सुविधाओं का लाभ नहीं उठा पाते। वैसे तो भारत सरकार ने आयुष्मान योजना से 5 लाख तक का फ्री इलाज किसी भी प्राइवेट अस्पताल या शासकीय अस्पताल में करवाने का प्रावधान किया हैं लेकिन हम बात कर रहे हैं कि बिना योजना के किसी भी व्यक्ति को चिकित्सा पाने का अधिकार होता है अगर हाँ तो संविधान के कौन से अनुच्छेद के अनुसार।

जानिए सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट के महत्वपूर्ण निर्णायक वाद:-

(1). परमानन्द कटारा बनाम भारत संघ:- {दुर्घटना वाले व्यक्ति को कोई भी प्राइवेट या शासकीय अस्पताल के चिकित्सक इलाज के लिए मना नहीं कर सकते हैं}-
इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अधीन कोई भी सरकारी या प्राइवेट अस्पतालो में कार्यरत डॉक्टरों का यह कर्तव्य है कि किसी भी दुर्घटना में घायल व्यक्ति को पुलिस की कार्यवाही की प्रतिक्षा किये बिना शीघ्रता से इलाज प्रारंभ करें। क्योंकि मानव जीवन की रक्षा करना सभी चिकित्सक का संवैधानिक कर्त्तव्य है।

(2). पश्चिम बंग खेत मजदूर समिति बनाम पश्चिम बंगाल राज्य:- 【शासकीय अस्पताल में इलाज की व्यवस्था नहीं होने पर प्राइवेट अस्पताल में इलाज करवाने पर इलाज का पैसे व्यक्ति को देना राज्य का संवैधानिक कर्तव्य है】-
इस मामले में प्रत्यर्थी हाकिम सिंह जो समिति का एक सदस्य था रेलगाड़ी से नीचे गिर गया था उसने उपचार के लिए कलकत्ता शहर के स्थित सभी सरकारी अस्पताल गया लेकिन शासकीय हॉस्पिटल में जगह खाली नहीं होने के कारण उसने प्राइवेट अस्पताल में अपना इलाज करवाया इलाज में उसका 17,000 रुपये खर्च हुआ। 

उसने सरकारी अस्पताल के चिकित्सकों के इस रवैये के खिलाफ अनुच्छेद 32 के अंतर्गत याचिका फाइल की,इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि राज्य द्वारा प्रत्यर्थी को चिकित्सा सहायता उपलब्ध न कराने से उसके अनुच्छेद 21 के अधीन प्रदत्त मूल अधिकार का उल्लंघन हुआ है, अतः राज्य सरकार उसे प्रतिकर देने के लिए बाध्य होगा। न्यायालय ने कहा अनुच्छेद 21 राज्य पर यह कर्त्तव्य आरोपित करता है कि वह प्रत्येक व्यक्ति के जीवन की रक्षा करे। 

राज्य द्वारा सरकारी अस्पतालों में कार्यरत चिकित्सकों का यह कर्तव्य है कि वे मानव जीवन की रक्षा के लिए चिकित्सा सहयता प्रदान करे। सरकारी अस्पतालों द्वारा जरूरत मंद व्यक्तियों को समय से चिकित्सा सहायता प्रदान करनें में विफलता से अनुच्छेद 21 द्वारा प्रदत्त ''प्राण,, के मूल अधिकार का उल्लंघन होता है। एवं संवैधानिक अधिकार से वंचित करने के मामले में न्यायालय से पीड़ित व्यक्तियों को अनुच्छेद-32 सुप्रीम कोर्ट एवं अनुच्छेद-226 हाई कोर्ट के अधीन प्रतिकर प्राप्त करनें की शक्ति प्राप्त है।

(3). शान्ता बनाम राज्य:- [शासकीय अस्पताल के चिकित्सकों इलाज में लापरवाही नहीं कर सकते हैं अगर वह ऐसा करते हैं तो यह असंवैधानिक होगा]-
इस मामले में आंध्रप्रदेश उच्च न्यायालय ने चिकित्सकों की लापरवाही के कारण पीड़ित को हुई क्षति के लिए नुकसानी प्रदान को हैं। एक महिला कर्नाटक राज्य के सरकारी अस्पताल में शल्य चिकित्सा से बच्चे को जन्म देने के लिए भर्ती हुई। डॉक्टरों ने ऑपरेशन किया और वह घर चली गई कुछ दिन बाद महिला का पेट दर्द हुआ और वह प्राइवेट नर्सिंग होम में भर्ती हो गई वहाँ उसका पुनः ऑपरेशन किया गया और सरकारी अस्पताल के चिकित्सकों की लापरवाही के कारण उसके पेट में तौलिया और अन्य चीजों को छोड़ दिया गया था। इस कारण उसे प्राइवेट अस्पताल में डेढ़ महीने तक रहना पड़ा।

महिला को शासकीय अस्पताल के चिकित्सकों ने धमकी दी कि वह इसकी शिकायत कही न करे तब महिला ने न्यायालय से प्रार्थना की वह मेरे एवं बच्चे की जीवन की रक्षा करे। इस मामले में आन्ध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को यह निर्देश दिया कि पीड़ित महिला को सभी आवश्यक चिकित्सीय सुविधा उपलब्ध कराए जब तक कि वह पूर्ण रूप से स्वास्थ्य न हो जाए। न्यायालय ने महिला को प्रतिकर के रूप में तीन लाख रुपए देने का भी आदेश दिया।न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि महिला चाहे तो चिकित्सकों के विरुद्ध पुलिस में भी शिकायत कर सकती है एवं नुकसान के लिए अपकृत्य विधि के अधीन डॉक्टरों के विरुद्ध कार्यवाही कर सकती हैं।  :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)

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