ऐसा है BHOPAL: 9 दिन की कन्या को 2 नई माताएं दूध पिला रही है, क्योंकि माँ की कोरोना से मौत हो गई है

Bhopal Samachar
भोपाल
। नवाब की कहानियां और पुराने भोपाल के पटियोें पर पैदा होने वाले गप सड़ाकों के अलावा नए भोपाल की अपनी एक पहचान है और वह है, बिना किसी प्राप्ति की उम्मीद किए एक दूसरे की मदद करना। मात्र 9 दिन की कन्या की माता का कोरोनावायरस के कारण निधन हो गया लेकिन कन्या के शारीरिक विकास में इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि भोपाल की दो महिलाओं ने तत्काल उसे अपना दूध देना शुरू कर दिया है।

पिता ने सोशल मीडिया पर मदर मिल्क मांगा

दरअसल राजधानी की एक वकील की गर्भवती पत्नी कोरोना संक्रमित हो गई। उसने 11 अप्रैल को एक बच्ची को जन्म दिया और 15 अप्रैल को कोरोना पीडित मां की मृत्यु हो गई। अब दुधमुंही बच्ची के सामने मां का दूध का संकट खड़ा हो गया। बच्ची अभी अस्पताल में भर्ती है। सोशल मीडिया के जरिए पिता ने यह पोस्ट वायरल की, जिसमें लिखा है कि बच्ची को मदर मिल्क की जरूरत है।

बिटिया की एक माँ पुलिस आरक्षक और दूसरी टैक्स एक्सपर्ट है

कुछ जिम्मेदार नागरिकों ने पोस्ट को देखा। इनमें बाल कल्याण समिति (CWC) सदस्य डॉ. कृपांशकर चौबे और GST में असिस्टेंट कमिश्नर उनकी पत्नी रक्षा दुबे चौबे भी शामिल थे। इन्होंने अपने परिचितों में उन महिलाओं से संपर्क किया जो हाल ही में मां बनी हैं।उनकी कोशिश रंग लाई और फिलहाल विशेष किशोर पुलिस इकाई में आरक्षक माया सिलोरिया और राज्य GST में कराधान सहायक ज्योति नापित ने बच्ची को दूध मुहैया कराने की जिम्मेदारी ली है। 

भोपाल में मदर मिल्क के लिए हेल्पलाइन नंबर

डॉ. चौबे ने बताया कि उम्मीद है कि जब तक बच्ची को आवश्यकता है उसके लिए आसानी से मां के दूध की व्यवस्था हो पाएगी। उन्होंने कहा कि जो भी बच्ची की मदद को इच्छुक हों वह मोबाइल नंबर पर 9425628989 पर संपर्क कर सकते हैं।

ऐसे बच्चों लिए को-आर्डिनेशन सेंटर बनाने की योजना

रक्षा चौबे ने बताया कि जब उन्हें पता चला कि नौ दिन की बच्ची मां के दूध के लिए रो रही है तो एक मां होने के नाते मन बहुत उदास हुआ। इसके बाद फेसबुक और वाट्सएप ग्रुप में इस पोस्ट को शेयर किया। इसके बाद दो महिलाएं मिली। उन्होंने बताया कि अभी कोविड काल में मां की दूध की समस्या बहुत हो रही है तो इसके लिए एक को-आर्डिनेशन सेंटर बनाने की योजना है।

यही तो भोपाल की पहचान है 

इसकी मार्केटिंग नहीं की गई लेकिन नए भोपाल की यही पहचान है। जब जहां और जिसको जरूरत होती है, उसके आसपास के लोग तत्काल मदद कर देते हैं। बिना किसी परिचय और प्रतिफल की इच्छा के भोपाल में लोग एक दूसरे की मदद करते हैं। यह कोई समाजसेवियों का शहर नहीं है, किसी को नाम और अवार्ड नहीं चाहिए लेकिन संवेदनशील और अच्छे लोगों का शहर है। 

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