समाज में घृणा उत्पन्न करने वालों के खिलाफ किस धारा के तहत मामला दर्ज होता है - पढ़िए IPC SECTION 153A

भारत एक लोकतांत्रिक देश है। सभी धर्म एवं विचारधाराओं के लोग भारत देश में स्वतंत्रता पूर्वक रहे इसी के लिए भारत का संविधान लागू किया गया। समाज में शांति बनी रहे इसलिए भारतीय दंड संहिता लागू की गई। ऐसे व्यक्ति जो अपने भाषण, वीडियो, संकेतों, फोटो, कार्टून, अन्य प्रकार के चिन्ह, लेख, बयान आदि से समाज में घृणा उत्पन्न करते हैं, उनके खिलाफ आईपीसी के तहत कठोर दंड का प्रावधान किया गया है।

भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 153 क की परिभाषा:-

अगर कोई व्यक्ति शब्दों, संकेतों, चिन्हों, लेखों, एवं दृश्यों या अन्य किसी रीति के द्वारा समाज में विभिन्न वर्गों, समुदायों, समूह, धर्म, जातियों आदि में वैमनस्यता, भेदभाव, बुराई, शत्रुता उत्पन्न करना आदि फैलाने का काम करता है जिससे लोकशांति में विघटन हो तब ऐसा करने वाला व्यक्ति धारा 153 क के अंतर्गत दोषी होगा।

【नोट:- राजनीतिक अशांति उत्पन्न करने वाले प्रकरण का समावेश धारा 153क के अंतर्गत दण्डनीय नहीं होगा यह निर्णय शिवकुमार मिश्र बनाम उत्तर प्रदेश वाद इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा लिया गया था।】

भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 153 क के अंतर्गत दण्ड का प्रावधान:-

इस धारा के अपराध किसी भी प्रकार से समझौता योग्य नहीं है, यह संज्ञेय एवं अजमानतीय अपराध होते हैं। इनकी सुनवाई का अधिकार प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट को होता है। सजा- इस अपराध के दण्ड की सजा को दो भागों में विभाजित किया है।

1.अगर वर्गों, समुदाय, धर्मो, जातियों आदि में शत्रुता उत्पन्न करवाना। तब तीन वर्ष की कारावास या जुर्माना या दोनो से दाण्डित किया जा सकता है।
2.अगर यही अपराध किसी पूजा स्थल, विशेष समुदाय के मंदिर में किया जाए। तब पांच वर्ष की कारावास एवं जुर्माने से दाण्डित किया जाएगा।

उधरणानुसार वाद:- शिव शर्मा बनाम सम्राट.- आरोपी ने एक विशेष धर्म के विरुद्ध प्रचार के आशय से उनके आराध्य देव की खिल्ली उड़ाई। न्यायालय ने विनिश्चित किया कि आरोपी का यह कार्य दो संप्रदायों के बीच शत्रुता और घृणा उत्पन्न करना था। अतः आरोपी को धारा 153 क के अंतर्गत दोषी ठहराया गया। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)

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