झुग्गी झोपड़ी से चाय बेचने वाले का बेटा IIT JEE निकाल ले गया - INSPIRATIONAL STORY WITH MORAL

Bhopal Samachar
भोपाल
। कहावत जो याद आ रही हो उसे फिट कर लीजिए, लेकिन कड़वा सच है कि जो मेहनत करता है उसकी जीत सुनिश्चित है। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के एमपी नगर इलाके में झुग्गी झोपड़ी से चाय बेचने वाले दंपति का बेटा IIT JEE निकाल ले गया। यह सच्ची कहानी उन तमाम स्टूडेंट्स के गाल पर तमाचा है जो अपनी असफलता का ठीकरा सुविधाओं और कोचिंग क्लास पर फोड़ते हैं। यह कहानी उन माता-पिता के लिए भी एक सबक है जो अपनी इच्छाएं अपने बच्चों पर थोप देते हैं। बच्चे में पोटेंशियल हो ना हो, उसका टारगेट सेट करके कोचिंग और हॉस्टल में एडमिशन करा देते हैं।

माता पिता झुग्गी झोपड़ी से चाय- पान मसाला आदि बेचते हैं

अनमोल अहिरवार राजधानी भोपाल के कमर्शियल एरिया एमपी नगर के पास बनी झुग्गी में रहते हैं। माता-पिता झुग्गी में ही चाय-पान की गुमटी लगाते हैं और जो कमाई होती है उससे घर का खर्च चलाते हैं। इसी से उन्होंने अनमोल की पढ़ाई का खर्चा उठाया और आज नतीजा यह है कि अनमोल ने देश की सबसे कठिन प्रवेश परीक्षाओं में से एक माने जाने वाली संयुक्त प्रवेश परीक्षा IIT-JEE में सफलता हासिल की है। पिछले महीने उसका सिलेक्शन आईआईटी कानपुर में केमिकल इंजीनियरिंग में हुआ है।

मां-बाप नहीं पढ़े लिखे, लेकिन बेटे को खूब पढ़ाया 

अनमोल के माता पिता पढ़े लिखे नहीं है लेकिन अपने बेटे को उच्च शिक्षा दिलाने के लिए चाय-पान की गुमठी लगाकर भी दिन रात मेहनत करते हैं। अनमोल के पिता चाय बनाते हैं और मां पान मसाला आदि बेचती हैं। इस छोटी सी झुग्गी में रहकर ही अनमोल अपने भाई के साथ पढ़ता है। रोज आठ से दस घंटे लगातार पढ़ाई करने वाला अनमोल अपने मां-बाप के काम में हाथ भी बटाता है।

टीचर्स ने भी काफी साथ दिया

अनमोल के माता-पिता बताते है कि वह शुरु से ही पढ़ाई में होशियार रहा है। 10वीं में 87% और 12वीं में 89.2% अंक लाने वाले अनमोल ने भोपाल के शासकीय सुभाष एक्सीलेंस स्कूल से पढ़ाई की है। स्कूल के प्रिंसिपल और टीचर ने उसकी प्रतिभा को देखते हुए उसकी हर संभव मदद की और IIT प्रवेश परीक्षा की तैयारी के लिए ऑनलाइन कोचिंग का इंतजाम करवा दिया। एडमिशन प्रक्रिया पूरी करके ऑनलाइन क्लास शुरु हुई और जब आईआईटी के नतीजे आए तो अनमोल अपनी मेहनत से अपनी सफलता कि इबारत लिखा चुका था।

MORAL OF THE STORY 

मोरल ऑफ द स्टोरी यह है कि सफलता उसी स्टूडेंट को मिलती है जो खुद अपने लिए काम करता है। सबसे पहले अपने अंदर संभावनाओं का पता लगाएं। हाई स्कूल के टीचर्स अक्सर स्टूडेंट्स में मौजूद गुण दोष को पहचान लेते हैं। उन्हें मौका दें कि वह आपके बारे में खुलकर अपना ओपिनियन रख सके। फिर अपने लिए गोल डिसाइड करें और उपलब्ध संसाधनों का पूरा उपयोग करते हुए आगे बढ़ना शुरू कर दें। याद रखिए जो भी व्यक्ति अपनी लाइफ में प्रतियोगिता के दौरान प्रतियोगी से अपनी तुलना करता है उसकी हार सुनिश्चित है। जीतने के लिए दूसरों को देखे बिना दौड़ लगाना जरूरी है।

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