LIC एजेंट की बेटी IAS बन गई, टारगेट सेट करने की आदत ने सफलता दिलाई / INSPIRATIONAL STORY WITH MORAL

नई दिल्ली।
देशभर में लाखों एलआईसी एजेंट काम कर रहे हैं। इतना तो कर ही लेते हैं कि फैमिली के सामने सर्वाइवल का प्रॉब्लम ना हो लेकिन कुछ लोग जब जॉब की परेशानियों में भी लाइफ के फंडे सीख लेते हैं। बिजनौर के एलआईसी एजेंट यशवंत सिंह की कहानी कुछ ऐसी ही है। उन्होंने न केवल अपने लिए टारगेट सेट किया बल्कि अपने बच्चों को भी टारगेट सेट करके अचीव करना सिखाया। नतीजा उनकी बेटी भानु सिंह भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसर बनने वाली है। उसने संघ लोक सेवा आयोग की सिविल सर्विस परीक्षा 2019 पास कर ली है।

भानु सिंह के पिता यशवंत सिंह एलआईसी में एजेंट हैं और मां हाउसवाइफ हैं। भानु बचपन से ही आईएएस बनना चाहती थी और उन्होंने उसी पर फोकस किया। यशवंत सिंह ने कड़ी मेहनत की लेकिन अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा के प्रति हमेशा प्रोत्साहित किया।उनकी बड़ी बहन सुप्रिया सिंह एलएलबी ग्रेजुएट हैं और पीसीएस जे की तैयारी कर रही हैं। 

छोटी बेटी आयुषी अहलावत दून मेडिकल कॉलेज देहरादून से एमबीबीएस कर रही है तो भाई राजकुमार MBBS की तैयारी कर रहा है। जीवन में किसी भी परीक्षा में 90% से कम अंक न लेने वाली भानु सिंह हर रोज कम से कम 10 से 12 घंटे पढ़ती थी। UPPSC का प्री एग्जाम भी उन्होंने पास कर लिया था लेकिन इंटरव्यू अटेंड नहीं किया। 

पापा ने पहली क्लास में ही है आईएएस बनने का टारगेट दे दिया था

भानु सिंह बताती हैं कि जब वह पहली कक्षा में थीं तब उनके पिता ने उन्हें आईएएस बनने के लिए प्रेरित किया था। तब उन्हें पता भी नहीं था कि आईएएस क्या होता है। लेकिन उन्होंने तब ही आईएएस और यूपीएससी की फुल फॉर्म याद कर ली थी। उन्होंने इंटर में 95 प्रतिशत अंक प्राप्त किए थे। उन्होंने अपने माता पिता से साइंस न पढ़ने को कहा तो माता पिता ने कोई आपत्ति नहीं की। 

पिता ने 23वें व्यक्ति से उधार लेकर भरी थी स्कूल की फीस

भानु सिंह का कहना है कि अगर किसी को ऐसे प्रोत्साहन मिलता है जैसे उन्हें मिला तो बच्चे कामयाब जरूर होंगे। वे बताती हैं कि वे बहुत साधारण परिवार से हैं। उनके घर में आज भी टीवी, फ्रिज, कूलर नहीं हैं। मध्यम वर्ग का होने के बाद भी उनके परिजनों ने कभी उन्हें पढ़ाई में तकलीफ नहीं होने दी। उनकी मां ने उनकी पढ़ाई के लिए गहने तक बेच दिए। जब वे कक्षा नौ में थीं तो उनकी फीस भरने के लिए पिता के पास पैसे नहीं थे। उनके पिता ने 22 लोगों से पैसे उधार मांगे लेकिन नहीं मिले। 23वें व्यक्ति से पैसे उधार मिले तो उनकी स्कूल की फीस भरी गई। माता पिता के समर्पण ने उन्हें हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।

MORAL OF THE STORY

मोरल ऑफ द स्टोरी यह है कि अपने जॉब के स्ट्रगल से कुछ ऐसा निकाला जा सकता है जो ना केवल बच्चों की लाइफ सेट कर देगा बल्कि आपकी पूरी जिंदगी की कुल कमाई से कहीं ज्यादा साबित होगा। बच्चों को रोज-रोज अपने स्ट्रगल की कहानियां सुनाकर एहसान जताने से बढ़िया है उसे अपने दिमाग में मथ कर मक्खन बना लिया जाए। बच्चे जैसन समझदार होंगे उस दिन आपके स्ट्रगल की वैल्यू अपने आप करने लगेंगे।

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