शासकीय या जनता की संपत्ति का गबन किस धारा के अंतर्गत दंडनीय अपराध है जानिए - ASK IPC

वर्तमान स्थिति की बात करे तो आम जनता को हर जगह लुटना पड़ रहा है, कोई भी व्यक्ति आम जनता के साथ कब लूट कर लेता है, पता ही नहीं चलता है। एक व्यापारी से लेकर कोई भी शासकीय अधिकारी या कोई एजेन्ट आम जनता को विश्वास दिलाकर कब विश्वास-घात कर दे किसी को पता भी नहीं चलता है। लेकिन ऐसा विश्वास-भंग करने वाले व्यक्ति को भारतीय दण्ड संहिता में कितना कठोर दण्ड दिया जाता है जानिए।

भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 409 की परिभाषा:-

अगर कोई लोकसेवक, व्यापारी, एजेंट, बैककर्मी, ग्राम सरपंच -सचिव,कियोस्क संचालक, दलाल, अटॉर्नी आदि व्यक्ति किसी व्यक्ति या आम जनता की संपत्ति को बेईमानीपूर्वक गबन कर लेता है। या ऐसी संपत्ति को जो जनता से कर या टैक्स के रूप में कार्यालय में जमा करने के लिए ली गई है। उसको बीच में ही गबन कर दे तब ऐसे लोकसेवक का उपर्युक्त कर्मी धारा 409 के अंतर्गत अपराधी होगा। क्योंकि ये सभी कर्मी जनता के विश्वास के पात्र होते हैं,इसी लिए इनका अपराध क्षमा योग्य नहीं होता है।

उधरणानुसार वाद:- वसंत बनाम राज्य- आरोपी एक तहसीलदार था जिसके रीडर ने लोगों से राजस्व राशि वसूली करके तहसीलदार की उपस्थिति में रसीदें बनाकर दी जिन पर तहसीलदार के हस्ताक्षर भी थे। उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि इस प्रकार की वसूल की गई राजस्व राशि पर तहसीलदार जबाबदार था, उसने राशि को कोषालय में न जमा करना एक लोकसेवक द्वारा आपराधिक न्यास भंग का अपराध किया है। इसके लिए आरोपी तहसीलदार को धारा 409 के अंतर्गत दोषी ठहराया गया।

भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 409 के अंतर्गत दण्ड का प्रावधान:-

इस धारा के अपराध किसी भी प्रकार से समझौता योग्य नहीं है, यह संज्ञेय एवं अजमानतीय अपराध है। इनकी सुनवाई का अधिकार प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट को हैं। सजा:- इस अपराध के लिए आजीवन कारावास से 10 वर्ष की कारावास हो सकती है एवं साथ मे जुर्माने से भी दण्डित किया जा सकता है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)

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