पहाड़ पर चढ़ने के बाद हमें थकावट महसूस क्यों नहीं होती है - INTERESTING SCIENCE IN HINDI

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Why do we not feel tired after climbing the mountain

जब भी पहाड़ पर चढ़ने की बात हो हमारे दिमाग में सबसे पहले हिमालय का ही नाम आता है। पहाड़ पर चढ़ना अपने आप में एक अद्भुत अनुभव है परंतु पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण शक्ति के विरुद्ध ऊंचाई पर चढ़ना आसान नहीं है। इसके लिए विषय प्रकार की ट्रेनिंग की आवश्यकता होती है।

ऊंचाई पर जाने पर मानव शरीर में क्या बदलाव होते हैं

• जैसे-जैसे हम ऊंचाई पर जाते हैं दाब (Pressure) कम होता जाता है, जबकि हमारे शरीर का दाब वही रहता है। इस कारण कई बार नाक से खून भी बाहर आने लगता है।
• ऊंचाई पर जाने पर ऑक्सीजन की मात्रा में भी कमी हो जाती है, जिसे Hypoxia कहा जाता है जिसके कारण हमें अवायुवीय श्वसन (Anerobic respiration) करना पड़ता है।
• जिसके कारण हमारी पेशियों या (muscles) में लैक्टिक एसिड जमा हो जाता है।
• लैक्टिक एसिड या लेक्टेट  अवायुवीय  श्वसन का एक रासायनिक  सहउत्पाद (byproduct) है।
• लैक्टिक एसिड का इस प्रकार पेशियों में इकट्ठा हो जाना मसल स्पैम्स (muscle spasms )या  मसल क्रैंप्स ( muscle  cramps) कहलाता है।

पहाड़ चढ़ते समय थकान महसूस क्यों होती है

ऊंचाई पर जाने पर जब हमें सांस लेने के लिए ऑक्सीजन की कम मात्रा उपलब्ध होती है। इस कारण हमें कई प्रकार की बीमारियां हो जाती हैं। जिन्हें सम्मिलित रूप से माउंटेन सिकनेस या altitude sickness कहा जाता है। इसके कारण कई प्रकार की समस्याएं जैसे सिर दर्द, सांस लेने में तकलीफ ,चक्कर आना, उल्टी होना आदि समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं।

क्योंकि पहाड़ पर चढ़ना भी एक कठिन शारीरिक व्यायाम है (Heavy physical exercise) है जिसके लिए हमारी पेशियों (Muscles) को अत्यधिक कार्य करना पड़ता है। इस कार्य को करने के लिए हमारी पेशियों को 70 से 80% ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है और चूँकि ऊँचाई पर ऑक्सीजन की कमी होती है। इसके कारण पेशियों में थकान (muscle fatigue) उत्पन्न हो जाती है)।

पहाड़ पर चढ़ने के बाद थकान क्यों नहीं होती

चूँकि ऊंचाई पर ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है तथा RBC की संख्या बढ़ जाती है। जब हम चढ़ाई पूरी करके अपने लक्ष्य पर पहुंच जाते हैं तब तक हमारा शरीर उपलब्ध ऑक्सीजन के लिए कंफर्टेबल हो चुका होता है और मसल्स को भी चढ़ते-चढ़ते अपने आप को उस परिस्थिति के अनुकूल बनाने की आदत हो जाती है, इसे  muscle learning कहा जाता है। इसलिए हमें रिलैक्स फील होता है।

पहले की रिसर्च मै ऐसा माना जाता था की लैक्टिक एसिड पेशियों मे जमा होकर थकान उत्पन्न करता है परंतु अब हुई नई साइंटिफिक रिसर्च के अनुसार लैक्टिक एसिड, बैड बॉय की तरह नहीं बल्कि गुड बॉय की तरह भूमिका निभाता है और मसल्स में जमा होकर, टूट जाता है और उन्हें ऊर्जा प्रदान करता है। इसी कारण पर्याप्त मात्रा में ऊर्जा मिल जाने के कारण पहाड़ों पर चढ़ने के बाद थकान महसूस नहीं होती। लेखक श्रीमती शैली शर्मा मध्यप्रदेश के विदिशा में साइंस की टीचर हैं। (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)

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