चांद में ऐसा क्या होता है कि उससे टकराकर सूर्य की गर्म किरणें ठंडी चांदनी में बदल जातीं हैं #सरलSCIENCE

श्रीमती शैली शर्मा। चंद्रमा पृथ्वी का प्राकृतिक उपग्रह है। उसका स्वयं का कोई प्रकाश नहीं होता बल्कि वह सूर्य के प्रकाश के कारण ही चमकता है। चूँकि चंद्रमा पर वायुमंडल भी नहीं है अर्थात निर्वात या वैक्यूम है।(vaccum means - ऐसा स्थान जहाँ हवा भी ना हो) इस कारण जब सूर्य की किरणें चंद्रमा की सतह पर टकराती हैं और वहां से परावर्तित होकर पृथ्वी तक आतीं हैं तो हमें चांद चमकता हुआ दिखाई देता है। इस रोशनी को ही हम चांदनी कहते हैं।

आइए अब इसका कारण जानने का प्रयास करें? 
तो यदि हमें यह पता करना है कि किसी प्रकाश स्रोत का किसी अन्य वस्तु पर क्या प्रभाव पड़ता है तो इसके लिए हमें पहले दो बातों की जानकारी होना आवश्यक है
1. प्रकाश का स्रोत कितना बड़ा और कितना गर्म है? 
2. जिस वस्तु पर हम उसका असर देख रहे हैं वह उससे कितनी दूरी पर है?  

जैसा कि हमें पता है कि सूर्य हमारे सौरमंडल का एक तारा है तथा एक प्रकाशीय स्रोत भी है। सूर्य का तापमान लगभग 6000 डिग्री सेंटीग्रेड होता है परंतु सूर्य जितनी ऊर्जा देता है उसका केवल दो अरबवां हिस्सा ही पृथ्वी को मिलता है। सूर्य से जितनी उर्जा चांद तक पहुंचती है उससे चांद की सतह का तापमान दिन के समय 130 डिग्री सेंटीग्रेड तक पहुंच जाता है। चांद पर पहुंची ऊर्जा का बहुत ही छोटा हिस्सा परावर्तित होकर पृथ्वी तक पहुंचता है उसकी मात्रा इतनी कम होती है कि उससे पृथ्वी के तापमान पर कोई खास फर्क नहीं पड़ता।

वास्तव में सूर्य की किरणों का रंग कैसा होता है? 

हमारा ऐसा दृष्टिकोण है या हम हमेशा सोचना चाहते हैं कि सूर्य की रोशनी पीले रंग की होती है जिसे हम बहुत गर्म मानते हैं परंतु जब हम किसी काली सतह से विकरित होते प्रकाश को देखते हैं तो पाते हैं कि नीला रंग लाल या पीले से भी अधिक गर्म होता है। इसलिए हम समझते हैं कि आग का मतलब पीला रंग।

वास्तव में सूर्य की किरणों को अगर निर्वात में देखा जाए तो सफेद ही दिखाई देंगी। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वायुमंडल में नीले प्रकाश का प्रकीर्णन होता है और इस कारण सूर्य की करने पीली दिखाई देने लगते हैं। 

चंद्रमा, पृथ्वी की परिक्रमा ठीक उसी तरह करता है जैसे पृथ्वी, सूर्य की परिक्रमा करती है। सूर्य की किरणें, चंद्रमा की सतह से परावर्तित हो जाती हैं और इस कारण चंद्रमा चमकता हुआ प्रतीत होता है। चंद्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करता है इसलिए उसका सिर्फ आधा भाग ही हमें दिखाई देता है।

चंद्रमा पर वातावरण नहीं है इस कारण चंद्रमा पर सूर्य की किरणों का काफी प्रभाव पड़ता है करीब 14 दिनों तक सूर्य की किरणों के कारण चंद्रमा की सतह गर्म हो जाती है और बाकी के 14 से 16 दिन तक यह बर्फीली और काली रात कैसी होती होती है।

तो यह सिर्फ हमारी एक सोच है कि पीली रोशनी गर्म होती है जबकि यह सूरज की गर्मी है ना कि प्रकाश का रंग। इस कारण हमें चंद्रमा की रोशनी ठंडी लगती है (😃सिर्फ लगती है होती नहीं है😃)
लेखक श्रीमती शैली शर्मा मध्यप्रदेश के विदिशा में साइंस की टीचर हैं। इस लेख में विदिशा की रेखा अग्रवाल एवं इंदौर के श्री लक्ष्य शर्मा का अध्ययन शामिल हैं। (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)

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