बरसात में नजर आने वाली हरी-हरी काई, जहरीला कचरा है या दवाई, पढ़िए #सरलSCIENCE

Bhopal Samachar
श्रीमती शैली शर्मा। बारिश का मौसम आ चुका है और अब हम कुछ ही दिनों में अपने आसपास मखमल जैसी हरी-हरी चादर दिखाई देगी। ग्रामीण भाषा में ऐसे काई या चोइ के नाम से जाना जाता है। सवाल यह है कि प्रकृति में इसकी आवश्यकता क्या है। क्या यह कोई जहरीला कचरा है या फिर दवाई। मनुष्य के जीवन के लिए लाभदायक है या हानिकारक। आइए जानने की कोशिश करते हैं। 

बरसात के मौसम में मखमल जैसी हरी चादर कैसे बनती है ?


विज्ञान की किताबों में इन्हें शैवाल या एलगी कहा जाता है जो सर्वव्यापी होते हैं। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि यह भी एक प्रकार के पौधे ही होते हैं परंतु इनमें जड़, तना, पत्ती, फल-फूल आदि रचनाएं नहीं पाई जाती हैं। इनक शरीर सुकाय या thallus  कहलाता है। यह वनस्पति जगत के सबसे बड़े समूह थैलोफाइटा के सदस्य होते हैं। 

शैवाल के वैज्ञानिक तथ्य-

शैवालों के अध्ययन को phycology कहा जाता।
शैवालों को सामान्यता समुद्री घास भी कहा जाता है। 

शैवाल से संबंधित आश्चर्यजनक तथ्य


आपको यह जानकर आश्चर्य होगा लाल सागर का लाल रंग भी trichodesmium erithium नामक शैवाल के कारण होता है। इसी के कारण उसका नाम लाल सागर पड़ा। 

शैवाल का उपयोग क्या होता है, क्या यह जहरीले होते हैं, क्या मनुष्यों के लिए फायदेमंद है

शैवाल सभी के लिए उपयोगी हैं। चाहे मनुष्य हो या जीव-जंतु। इनका उपयोग आयोडीन बनाने में, भोजन में, औषधियों में, कृषि में ,खाद के रूप में, अनुसंधान कार्यों आदि में किया जाता है। कुछ शैवाल हानिकारक भी होते हैं। यह समुद्र में एल्गल ब्लूम्स उत्पन्न करते हैं जिनके कारण बड़े से बड़े जहाज भी डूब जाते हैं। कुछ शैवाल पौधों में रोग भी करते हैं। 

पृथ्वी पर शैवाल की उत्पत्ति कब हुई

पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के समय से ही शैवाल उपस्थित है इनके द्वारा सर्वाधिक मात्रा में प्रकाश संश्लेषण किया जाता है जो कि जीवन के लिए बहुत आवश्यक क्रिया है। 
लेखक श्रीमती शैली शर्मा मध्य प्रदेश के विदिशा में अतिथि शिक्षक हैं। (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!