कालाधन वापिसी अब भी मुद्दा है ? | EDITORIAL by Rakesh Dubey

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) और  उनकी पार्टी भारतीय जनता पार्टी के लिए किसी समय प्रमुख मुद्दा “काला धन” हुआ करता था. अब यह मुद्दा बदल गया है, पर इससे इस मुद्दे के मूल स्वरूप में कोई परिवर्तन नहीं आया है | काला धन एकत्र करने का यह वित्तीय अपराध और उसके मूल में कर चोरी भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास की प्रमुख बाधाओं में से एक हैं| ऐसी भ्रष्ट गतिविधियों से अर्जित धन का एक बड़ा हिस्सा जब अवैध तरीकों से विदेश पहुंच का काला धन का एक ऐसा स्वरूप ले लेता है जिसमे वैध मुद्रा को अवैध कहलाती है| काले धन का हिसाब लगाने, उसे वापस देश में लाने तथा कायदे-कानूनों के जरिये अवैध वित्तीय व्यवहारों पर अंकुश लगाने की कोशिशें सरकारी स्तर पर होती रही हैं, पर ये अब तक असफल ही साबित हुई हैं दावा बीते पांच सालों में इस मसले पर ठोस पहलकदमी का जरुर है, लेकिन इस समस्या का समाधान बहुत चुनौतीपूर्ण है| काले धन की समस्या पर बनी संसद की स्थायी समिति भी विदेशों में अवैध रूप से जमा भारतीय पूंजी का अब तक कोई निश्चित आकलन नहीं कर सकी है.

एक रिपोर्ट के अनुसार समिति ने वित्तीय शोध और अध्ययन से जुड़े तीन प्रमुख राष्ट्रीय संस्थाओं के अध्ययन का संज्ञान लिया है, लेकिन इनके आकलन में व्यापक अंतर मिला है| एक अन्य अध्ययन के अनुसार, 1997 से 2009 के बीच देश से बाहर गये काले धन की मात्रा सकल घरेलू उत्पादन का 2.7 से 7.4 प्रतिशत हो सकती है, तो दूसरी रिपोर्ट बताती है कि 1980 से 2010 की अवधि में भ्रष्ट भारतीयों द्वारा बाहर ले जायी गयी रकम 384 अरब डॉलर से 490 अरब डॉलर के बीच हो सकती है|

एक तीसरी रिपोर्ट भी है जिसका आकलन है कि 1990 से 2008 के बीच विदेश गये देशी धन की मात्रा 216.48 अरब डॉलर है| अब तो सरकार ने भी यह मान लिया है कि पारदर्शिता और नियमन की कमी तथा आकलन की प्रक्रिया पर सहमति न होने के कारण किसी सर्वमान्य आंकड़े का निर्धारण संभव नहीं है|

संसद द्वारा गठित संसदीय समिति ने वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग से देश के भीतर और बाहर काले धन का पता लगाने, वापस लाने तथा दोषियों को दंडित करने की कोशिशों को जारी रखने को कहा है| साल 2009 में संसदीय समिति के कहने के बाद 2011 में तत्कालीन सरकार के निर्देश पर तीन संस्थाओं ने अवैध तरीके से कमाये और जमा किये गये धन के आकलन का काम शुरू किया था, जिसे इन तीन राष्ट्रीय संस्थाओं ने 2014 में पूरा कर लिया था|इनमें यह भी जानकारी दी गयी है कि रियल एस्टेट, खनन, दवा निर्माण, तंबाकू, सोने-चांदी, सिनेमा और शिक्षा जैसे कारोबारों में सबसे अधिक काला धन है| कुछ समय पहले छपी रिपोर्टों की मानें, तो इन तीनों अध्ययनों में एक बात को लेकर पूरी सहमति है कि विदेश से कहीं बहुत अधिक काला धन देश के भीतर है| नवंबर, 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा घोषित नोटबंदी का एक बड़ा आधार यही था, पर इस प्रयोग से देश को कोई बहुत बड़ा लाभ नहीं हुआ है | 

काले धन के उत्सर्जन को रोकने के लिये वस्तु एवं सेवा कर, काला धन पर कराधान कानून, कर चोरी रोकने के लिए नियमन और विभिन्न देशों के साथ करार, बेनामी कानून में संशोधन जैसे कदम पिछले सालों में उठाये तो गये हैं, पर उनके परिणाम अब तक अपेक्षित हैं | कहने को अर्थव्यवस्था को पारदर्शी बनाने, डिजिटल लेन-देन बढ़ाने और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के नुकसानदेह वित्तीय व्यवहार को रोकने के लिए अनेक कदम उठाये गये हैं, पर परिणाम उनके भी कोई ठोस आकार में सामने नहीं आये हैं | सरकार को इस सब पर एक श्वेत पत्र देश के सामने रखना चाहिए |.इन उपायों के सकारात्मक-नकारात्मक परिणाम भी सामने आना चाहिए | इससे सरकार और उसके दल की इस विषय पर बची शेष रूचि और राष्ट्र हित का एक बड़ा मुद्दा किसी ठोस रास्ते पर चल कर भटकने से बचेगा |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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