मोदी–पुतिन मुलाकात और चंद सवाल | EDITORIAL

राकेश दुबे@प्रतिदिन। रूस के शहर सोची में आज रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुलाकात होने वाली है। यह मुलाकात इसलिए भी अहम है कि जर्मनी की चांसलर एंजला मर्केल तीन दिन पहले ही पुतिन से मिलकर वापस लौटी हैं और आज से तीसरे दिन फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों मॉस्को में होंगे। कहने की जरूरत नहीं कि ये सभी देश ईरान के साथ परमाणु करार से अमेरिका के पीछे हटने से बैखलाए हुए हैं।कहने को प्रधानमंत्री मोदी और पुतिन की यह एक अनौपचारिक मुलाकात हैं। इस मुलाकात से जुडा एक सवाल यह भी है कि जब मोदी और पुतिन की मुलाकात पहले से शंघाई सहयोग संगठन (चीन) की बैठक और फिर ब्रिक्स समिट में तय है, तो फिर अचानक यह मुलाकात क्यों जरूरी हो गई? शंघाई सहयोग संगठन की बैठक अगले महीने हो रही है और ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका का संगठन) की बैठक जुलाई में दक्षिण अफ्रीका में प्रस्तावित है।

इस मुलाकात का सबसे महत्वपूर्ण विषय ईरान के साथ परमाणु करार से अमेरिका का पीछे हटना हो सकता है। इस पर विमर्श इसलिए जरूरी है, क्योंकि अमेरिकी राजनयिक कह रहे हैं कि परमाणु समझौते के बाद जिन-जिन देशों ने ईरान से जिस भी तरह के संबंध बनाए हैं, वे सब उससे वे रिश्ते तोड़ लें। हालांकि औपचारिक रूप से सिर्फ परमाणु रिश्ते खत्म करने की बात कही जा रही है, पर राजनयिकों के बयान के कई और अलहदा अर्थ निकल रहे हैं। 

भारत का ईरान के साथ हमारा कोई परमाणु रिश्ता नहीं है। भारत उससे मूलत: तेल का आयात करता हैं। प्रतिबंध के दौर में यह कम था, मगर जब से बंदिशें हटाई गई थीं, ह पहले से ज्यादा कच्चा तेल वहां से आने लगा है । भारत चाबहार बंदरगाह को भी विकसित कर रहा हैं। अमेरिकी फैसले का दुष्प्रभाव भारत पर न पड़े रूस इसमें हमारी मदद कर सकता है। दूसरा मसला उत्तर कोरिया का हो सकता है। इन दिनों उसके परमाणु कार्यक्रम को बांधने की कोशिशें जोरों पर हैं। मगर बीच-बीच में अमेरिका और उत्तर कोरिया, दोनों पक्षों से तनातनी की खबरें भी आई हैं। अमेरिका व उत्तर कोरिया में बनती बात यदि बिगड़ती है, तो उसका नुकसान भारत को भी हो सकता है। 

तीसरा मसला खुद रूस से जुड़ा है। अमेरिकी चुनाव में कथित दखल देने और यूक्रेन व सीरिया की गतिविधियों का हवाला देकर अमेरिकी प्रशासन रूस पर प्रतिबंध लगाने की तैयारी में जुटा हुआ है। इसके अलावा, अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप का एक फैसला यह भी कहता है कि यदि कोई देश रूस के साथ रक्षा व खुफिया क्षेत्र में कारोबार करता है, तो उस पर अमेरिका प्रतिबंध लगा सकता है। रूस के साथ हमारा रक्षा व परमाणु ऊर्जा संबंध जगजाहिर है।भारत को यह भी याद रखना चाहिए कि, आजाद भारत जब-जब जंग में धकेला गया, रूस हमारे साथ खड़ा रहा। आज भी भारत की रक्षा-जरूरतों का करीब ६२ प्रतिशत हिस्सा रूस पूरा करता है। ऐसी सूरत में, अमेरिकी प्रतिबंध की जद में भारत  भी हैं। रूस के बहाने लगने वाली बंदिशें हमें ज्यादा नुकसान पहुंचा सकती हैं। 

मोदी-पुतिन मुलाकात में पाकिस्तान-रूस दोस्ती पर भी चर्चा हो सकती है। पिछले कुछ महीनों में मास्को और इस्लामाबाद की नजदीकियां बढ़ी हैं, जिसमें चीन मध्यस्थ की भूमिका में रहा है। इस दोस्ती का सीमित रहना ही हमारे हित में है। संभवत: नए बाजार ढूंढ़ने के लिए मास्को ऐसा कर रहा है। ऐसे में, रूस को यह बताना लाजिमी है कि वह पाकिस्तान के साथ संबंध बढ़ाए, पर इसका ख्याल भी रखे कि भारत की सुरक्षा के साथ कोई समझौता न हो।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए
आप हमें ट्विटर और फ़ेसबुक पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं।

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !