राकेश दुबे@प्रतिदिन। एअर इंडिया के विमान में एयरलाइन्स के ड्यूटी मैनेजर की शिवसेना सांसद के बीच जो कुछ घटा वह हमारी समूची व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह है। मान लीजिए, इस घटना को अंजाम देने वाला व्यक्ति संसद सदस्य नहीं होता, तो क्या होता? एयरलाइन्स वाले उद्दंडता और मारपीट के आरोप में उसे तुरंत पुलिस के हवाले कर देते। पुलिस अपने तरीके से उसकी सेवा करती। उससे कड़ी पूछताछ की जाती। उसकी पृष्ठभूमि अच्छी तरह खंगाली जाती। उद्दंडता और मारपीट के अलावा उसके खिलाफ उड़ान में देरी कराने का मामला भी तुरंत दर्ज करा दिया जाता। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। सांसद महोदय ने न सिर्फ ड्यूटी मैनेजर को 25 बार चप्पल से मारा, बल्कि टेलीविजन कैमरों के सामने खुलेआम स्वीकार भी किया। और तो और, माफी मांगने तक से इनकार कर दिया। लेकिन इसके आगे कुछ नहीं हुआ।
सांसद महोदय के खिलाफ दो शिकायतें दर्ज हुईं, पर पुलिस काफी वक्त तक इसी पर विचार करती रही कि एफआईआर दर्ज की जाए या नहीं। यह बताता है कि हमारी पुलिस एक संसद सदस्य और एक आम आदमी में कितना फर्क करती है? सांसद महोदय चप्पल चलाकर भी सीना ठोक रहे हैं, बाकी कोई चूं भी कर दे, तो उसकी खासी ठुकाई हो जाती है। लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन घटना को दुर्भाग्यपूर्ण तो मानती हैं, मगर उनका कहना है कि मामले का स्वत: संज्ञान लेकर वह कोई कार्रवाई नहीं कर सकतीं। यह तो अच्छा हुआ कि क्लोज सर्किट और मोबाइल कैमरों के इस जमाने में घटना का वीडियो सामने आ गया, वरना अभी तक ऐसी किसी घटना के होने से ही इनकार कर दिया गया होता।
ये वही माननीय हैं, जिन्होंने तीन साल पहले दिल्ली के महाराष्ट्र सदन में एक वेटर के मुंह में जबरन रोटी ठूंस दी थी। वह रमजान का महीना था और महाराष्ट्र सदन का वह वेटर रोजे से था। जिस तरह उस घटना को हम भूल गए, जल्द ही एअर इंडिया की फ्लाइट में हुई मारपीट को भी भूल जाएंगे। फिर इस घटना की याद हमें तब आएगी, जब सांसद महोदय अपना कोई नया कारनामा लेकर देश के सामने हाजिर होंगे। पिछले मामले का जिक्र इसलिए भी जरूरी है कि आज की तरह ही तब हमने सांसद महोदय की लानत-मलानत करते हुए कुछ समय तक खबरों के चटखारे लिए और यह जानने में हमारी कोई दिलचस्पी नहीं रही कि उस वेटर को न्याय मिला या नहीं? या सांसद महोदय के खिलाफ कोई कदम उठाया गया कि नहीं? अगर उस कारनामे को किसी अंजाम तक पहुंचा दिया जाता, तो शायद सांसद महोदय भी नया कारनामा करने से पहले कुछ सोचते और संसद को इस तरह शर्मसार न होना पड़ता।
दो चीजें बहुत जरूरी हैं। एक तो यह कि कदाचार करने वाले सांसद और विधायक से वही व्यवहार किया जाए, जो कदाचार करने वाले किसी आम शख्स से किया जाना चाहिए। हमारी व्यवस्था में सांसदों, विधायकों को वीआईपी का दर्जा मिला हुआ है। यह भी गलत है, पर इसे अब सब स्वीकार कर चुके हैं, मगर किसी गलत काम के बाद भी उन्हें वीआईपी माना जाए, यह किसी व्यवस्था के लिए ठीक नहीं, लोकतंत्र में तो अक्षम्य होना चाहिए। दूसरी, हमारी संसद और विधानसभाओं को ऐसे तरीके बनाने चाहिए, जिससे इस तरह का व्यवहार करने वालों को दंडित किया जा सके। वरना कुछ लोगों का बर्ताव पूरी राजनीति को बदनाम करेगा।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क 9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए