विवाहित महिला की आत्महत्या के मामले में उसके ससुराल वाले एवं उसका पति फर्स्ट सस्पेक्ट होते हैं। लड़की वाले दावा करते हैं कि ससुराल में उनकी लड़की को प्रताड़ित किया जा रहा था लेकिन कई बार उनके पास आरोप को साबित करने के लिए सबूत नहीं होते। आइए जानते हैं कि कोर्ट में यदि वो कोई सबूत पेश नहीं कर पाए तो क्या ससुराल वालों को दोष मुक्त घोषित कर दिया जाएगा या फिर कोई कानून है जो गुनाहगारों को पहचान करेगा और उन्हें दंडित करवाएगा।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 113 (क) की परिभाषा
अगर कोई विवाहित स्त्री शादी के सात साल के भीतर पति या पति के नातेदार से प्रताडित होकर या उत्प्रेरणा के कारण आत्महत्या कर लेती है, या आत्महत्या की कोशिश करती है, तब न्यायालय का उक्त धारा के अंतर्गत यह उपधारणा (अनुमान) करना ठोस साक्ष्य होगा की स्त्री द्वारा किया गया कृत्य पति या पति के नातेदार के दुष्प्रेरण (उकसाहट) द्वारा किया गया था।
ऐसी स्थिति में आरोपी बनाए गए पति अथवा उसके रिश्तेदारों को दंडित किया जाएगा फिर भले ही उनके खिलाफ कोई दूसरा ठोस साक्ष्य उपलब्ध ना हो। भारतीय साक्ष्य अधिनियम,1872 की धारा 113(क) न्यायालय कोई अधिकार देती है कि वह दोनों पक्षों द्वारा उपस्थित किए गए गवाहों के बयान के आधार पर अनुमान लगाए। विवाहित महिला की आत्महत्या के मामले में कोर्ट का अनुमान ही प्रमाण माना जाता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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