पुलिस द्वारा FIR दर्ज करने के बाद मामले की इन्वेस्टिगेशन की जाती है और जब पुलिस अपनी विवेचना में अपराध का होना एवं आरोपी का अपराध में संलिप्त होना पाती है तब कोर्ट में चालान पेश किया जाता है ताकि न्यायालय सजा निर्धारित कर सके। कोर्ट में ट्रायल के दौरान आरोपी के विरुद्ध कलेक्ट किए गए एविडेंस प्रस्तुत किए जाते हैं। आइए जानते हैं कि साक्ष्य प्रस्तुत करते समय आरोपी का न्यायालय में होना अनिवार्य है या नहीं।
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 273 की परिभाषा
अगर कोई अभियोजन (पीड़ित) पक्षकार न्यायालय में कोई साक्ष्य देता है तब आरोपी की उपस्थिति में ही देगा, किसी कारणवश अगर आरोपी की वहाँ उपस्थिति नहीं होती है, जैसे राज्य सरकार द्वारा परिशन्ति भंग होने की दशा आदि में रोक पर, तब आरोपी के वकील की उपस्थिति में साक्ष्य को न्यायालय में पेश किया जाएगा।
विशेष नोट :- परन्तु पॉस्को एक्ट, बलात्कार या किसी अन्य लैंगिक अपराध की स्थिति में आरोपी का होना आवश्यक नहीं है न ही उनके वकील का होना।
साधारण शब्दों में कहें तो न्यायालय के समक्ष पीड़ित व्यक्ति सभी साक्ष्यों को आरोपी या उसके वकील की उपस्थिति में ही पेश करेगा अन्यथा इस धारा के अंतर्गत विचारण अवैध होगा। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665
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