कलेक्टर से अनुमति लेकर खरीदी अनुसूचित जनजाति की जमीन का नामांतरण कब रद्द हो सकता है, जानिए

Madhya Pradesh legal general knowledge and law study notes

मध्यप्रदेश भू-राजस्व संहिता, 1959 की धारा 165(5) में बताया गया है कि कोई गैर आदिवासी व्यक्ति अगर आदिवासी व्यक्ति की भूमि खरीदता है तो उसे कलेक्टर से अनुमति लेनी पड़ती है। अगर वह जिला कलेक्टर से अनुमति नहीं लेता है तो उसके द्वारा खरीदी गई भूमि अवैध कब्जा में आएगी। लेकिन कोई गैर आदिवासी व्यक्ति कलेक्टर से अनुमति लेने के बाद आदिवासी समुदाय की जमीन खरीद लेता है तब वह जमीन खरीदने के बाद भी कब शून्य (अवैध खरीदी) मानी जाएगी जानिए।

मध्यप्रदेश भू-राजस्व संहिता,1959 की धारा 170 (ख) की परिभाषा

जब कोई भूमि गैर आदिवासी व्यक्ति, आदिवासी समुदाय के सदस्य से किसी छल, कपट, धोखाधड़ी या किसी लोभ लालच देकर कलेक्टर की अनुमति से खरीद लेता हैं। तब कोई भी आदिवासी व्यक्तिगत उपखण्ड अधिकारी को आवेदन देकर ऐसी जाँच करवा सकता है। अगर उपखण्ड अधिकारी (एसडीओ) को लगता है की गैर आदिवासी व्यक्ति ने कपट या धोखे से आदिवासी व्यक्ति की भूमि खरीदी हैं, तब जाँच के बाद उपखण्ड अधिकारी ऐसी भूमि का अन्तरण शून्य या अवैध कर सकता है।

Madhya Pradesh Land Revenue Code, 1959 Section 170 (b)

अर्थात, अनुसूचित जनजाति, आदिवासी वर्ग की जमीन अथवा संपत्ति खरीद बिक्री के लिए कलेक्टर की अनुमति एवं इस अनुमति के आधार पर हुआ नामांतरण, अन्य वर्ग के खरीदार को संपत्ति के स्वामित्व का अंतिम अधिकार नहीं देता। कलेक्टर की अनुमति के बाद भी शिकायत हो सकती है और शिकायत की जांच हो सकती है। यदि जांच में गड़बड़ी पाई गई तो नामांतरण के साथ कलेक्टर की अनुमति भी निरस्त हो सकती है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665 

इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com

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