हमने आपको बताया था कि भारत की न्यायपालिका एकीकृत हैं, अधिवक्ता अधिनियम,1961 की धारा 16 से 28 तक अधिवक्ताओं के प्रवेश एवं नामांकन के संबंध में नियम बनाए गए हैं। इसी प्रकार अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 30 अधिवक्ता को महत्वपूर्ण शक्ति प्रदान करती है। इसके अंतर्गत प्रत्येक अधिवक्ता जिसका नाम राज्य विधिज्ञ परिषद में दर्ज हैं वह भारत के सभी न्यायालयों में जिसमें उच्चतम न्यायालय भी शामिल हैं, में विधि व्यवसाय करने का हकदार हैं अर्थात विधि व्यवसाय करने का अधिकार रखता है।
लेकिन केंद्रीय सरकार द्वारा इसे प्रभाव में न लाए जाने के कारण अधिवक्ताओं का अभी भी बहुत से अधिकरणों पर रोक लगी गई है। जैसे कि औधोगिक अधिकरण, पारिवारिक न्यायालय आदि में उपस्थित होना निषिद्ध हैं। हम बात कर रहे हैं आपराधिक मामलों में एक अधिवक्ता अन्य जिले में किस कानून के अंतर्गत विधि-व्यवसाय कर सकता है जानिए।
दण्ड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 2 की उपधारा 19 अर्थात 2(थ) की परिभाषा:-
इस धारा के अनुसार आपराधिक मामलों की सुनवाई के लिए दो प्रकार के अधिवक्ता होते हैं
(1). एक वह अधिवक्ता जिसे न्यायालय द्वारा नियुक्त किया जाता है अर्थात सरकारी वकील।
(2). दूसरा वह अधिवक्ता जो न्यायालय द्वारा नहीं प्रतिवादी पक्षकार या पीड़ित पक्षकार की सहमति से नियुक्त किया जाता है उसे न्यायालय द्वारा नियुक्त नहीं किया जाता है वह होता है अर्थात कोई भी प्राइवेट वकील।
उक्त धारा के अनुसार अगर प्राइवेट अधिवक्ता दूसरे जिले में अपना वकालत करना चाहता हैं तो उसे न्यायालय से विशेष मामले में पैरवी के लिए इजाजत लेनी होगी। लेकिन न्यायालय ऐसी इजाजत मामले के आधार पर एवं अपने विवेक के आधार पर देगा।
साधारण शब्दों में बात करे तो एक नामांकित अधिवक्ता भारत के किसी भी न्यायालय में विधि-व्यवसाय करने का अधिकार रखना है पर कुछ नियमों एवं शर्तों का पालन होना आवश्यक होता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665
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