मरीज की मौत पर डॉक्टर के खिलाफ FIR क्यों नहीं होती - IPC SECTION-88

कहते हैं कि डॉक्टर मरीज को लिए भगवान का रूप होते हैं वह अपने मरीज को बचाने के हर सम्भव प्रयास करते हैं, इसी की ध्यान में रखते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा बिना किसी कारण के डॉक्टर पर यदि आपराधिक मामला चलाया जाएगा तो समाज के लिए हितकर नहीं होगा क्योंकि डॉक्टर किसी मरीज का स्वतंत्रता से इलाज नहीं कर सकता है एवं रोगी और डॉक्टर के बीच में विश्वास गिरने लगेगा। डॉक्टर अपनी प्रतिरक्षा के लिए अधिक चिंतित होंगे इस लिए डॉक्टरों को शर्तो के साथ धारा-88 के अंतर्गत संरक्षण देना आवश्यक है।

भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 88 की परिभाषा

बिना आपराधिक उद्देश्य से किसी व्यक्ति के फायदे के लिए उसकी सहमति से किया गया सावधानीपूर्वक कार्य जिसके कारण कोई गंभीर उपहति या मृत्यु कारित हो जाए वह धारा 88 के अंतर्गत किसी भी प्रकार का अपराध नहीं माना जाता। यानी सिर्फ डॉक्टर ही नहीं बल्कि किसी भी नागरिक को आईपीसी की धारा 88 के तहत संरक्षण प्राप्त हो सकता है। 

डॉक्टर को धारा 88 के तहत संरक्षण कब मिलेगा- जुम्मन खाँ बनाम सम्राट केस रेफरेंस:- 

मामले में न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया कि जहाँ किसी डॉक्टर को धारा-88 के अधीन संरक्षण दिए जाने का प्रश्न हैं, मामले में तीन बातों पर विचार किया जाना आवश्यक है। पहला यह कि रोगी को यह पता हो कि इलाज या ऑपरेशन जोखिम भरा है इससे उसे खतरा उत्पन्न हो सकता है या कोई गंभीर हानि भी। दूसरा यह कि इसके लिए रोगी की सहमति (स्वीकृति) आवश्यक है। तीसरा यह कि डॉक्टर द्वारा अपना कार्य सद्भावनापूर्वक किया गया हो, अर्थात अपने कार्य में सावधानी एवं सतर्कता बरती हो तभी इस धारा के अंतर्गत बचाव मिल सकता है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)

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