पढ़िए किस तरह की धमकी के लिए किस राज्य में कितनी सजा का प्रावधान है

आज हम आपको जिन तीन अपराधों की धाराओं में बताएं भारतीय दण्ड संहिता की धारा 505, 506, 507 जो दण्ड संहिता के भारत के सभी राज्यों में असंज्ञेय अपराध होता है लेकिन मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ राज्य सरकार के संशोधन अधिनियम 1975 में इन्हें संज्ञेय अपराध माना गया है। सरल शब्दों में यदि आप किसी से कहते हैं कि 'अगली बार दिखाई दिया तो टांग तोड़ दूंगा' तो इस धमकी के लिए FIR दर्ज होगी या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप किस राज्य में धमकी दे रहे हैं।

धारा 506 का अपराध अगर उत्तर प्रदेश के जिलों में किया जाता है तब यह अपराध उत्तर प्रदेश राज्य संशोधन 1989 के अनुसार संज्ञेय एवं अजमानतीय होता है। पिछले लेखों में हमने आपको बताया था कि संज्ञेय अपराध वह होते हैं जिसमे पुलिस थाना अधिकारी को पीड़ित व्यक्ति की एफआईआर दर्ज करना ही होता है और आरोपी को गिरफ्तार करके 24 घण्टे के अंदर न्यायालय में पेश करना होता है। 

एवं असंज्ञेय अपराध वह होता है जिसमें पुलिस अधिकारी एफआईआर दर्ज नहीं करते हैं वह सिर्फ शिकायत को एनसीआर रजिस्टर में दर्ज करती है एवं बिना वारण्ट के आरोपी को गिरफ्तार नहीं कर सकती है। असंज्ञेय अपराध से पीड़ित व्यक्ति न्यायालय में मजिस्ट्रेट के पास भी अपनी शिकायत दर्ज करवा सकते हैं।

भारतीय दण्ड संहिता 1860 की धारा 503 की परिभाषा:-

दण्ड संहिता की धारा 503 आपराधिक अभित्रास की परिभाषा बताती है अगर कोई व्यक्ति प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी को धमकी देता है या किसी विधि विरुद्ध काम करने के लिए धमकता है या सामान्य चोट, गंभीर चोट, मृत्यु, बर्बाद करने की धमकी, अशील फोटो अथवा वीडियो शेयर करने की धमकी आदि उसके आपराधिक उद्देश्य को पूरा करने के लिए देता है वह व्यक्ति धारा 503 के अंतर्गत आपराधिक अभित्रास के अपराध का दोषी होगा।

भारतीय दण्ड संहिता 1860 की धारा 503 में किए गए अपराध का दण्ड का प्रावधान:-

भारतीय दण्ड संहिता की धारा के अंतर्गत किए गए अपराध के अंतर्गत दण्ड का प्रावधान धारा 506 में दिया गया है। इस धारा के अपराध दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 320 की सारणी 1 के अनुसार पीड़ित व्यक्ति से समझौता योग्य होते हैं। यह मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ (संज्ञेय अपराध), उत्तरप्रदेश (संज्ञेय एवं अजमानीय) होते हैं, बाकि सम्पूर्ण भारत में असंज्ञेय एवं जमानतीय अपराध होते हैं। 

इनकी सुनवाई का अधिकार अगर सामान्य धमकी दी गई है तब किसी भी मजिस्ट्रेट को है। अगर धमकी चोट, मृत्यु आदि से दी गई है तब इसकी सुनवाई का अधिकार प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट को हैं। 

सजा:- इस अपराध के लिए सजा को दो भागों में बांटा गया है- 

1. अगर आरोपी सामान्य धमकी देता तब:-दो वर्ष की कारावास या जुर्माना या दोनों से दाण्डित किया जा सकता है।
2. यदि धमकी मृत्यु, गंभीर चोट आदि की दी गई है तब 7 वर्ष की कारावास या जुर्माना या दोनो से दाण्डित किया जा सकता है।

उधरणानुसार वाद:- रमेश चंद्र अरोरा बनाम राज्य- मामले में आरोपी ने एक युवती के अश्लील चित्र खींचे और लड़की के पिता को धमकी दी कि यदि उसे मुँह मांगी रकम न दी गई तो वह उन चित्रों को प्रकाशित/प्रसारित करा देगा। उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में अभिनिर्धारित किया कि आरोपी आपराधिक अभित्रास का दोषी है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)

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