न्यायालय दस्तावेज पेश करने के लिए समन कब जारी कर सकता है - LEARN CrPC SECTION 91

दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 का अध्याय-7 कोई दस्तावेज का चीजे पेश करने को विवश करने के लिए आदेश या समन जारी करने का अधिकार मजिस्ट्रेट या अधिकारी को देता है। यह आदेश या समन फौजदारी अपराध अर्थात क्रिमिनल मामले से सम्बंधित होना चाहिए क्योंकि दण्ड प्रक्रिया संहिता सिर्फ आपराधिक मामले की प्रक्रिया होती है। इस धारा में कोई पुलिस अधिकारी दस्तावेज पेश करवाने के लिए आदेश जारी करेगा एवं न्यायालय का पीठासीन अधिकारी दस्तावेज पेश के लिए समन जारी करेगा।

दण्ड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 91 की परिभाषा (सरल एवं संक्षिप्त शब्दों में):-

1. जब कोई न्यायालय या थाने का अधिकारी को अन्वेषण, जाँच, विचारण या अन्य कोई कार्यवाही के दौरान लगता है कि आरोपी या उससे संबंधित किसी अन्य व्यक्ति से कोई दस्तावेज या चीज पेश करवाना हो तब यह अधिकारी इस इस धारा के अनुसार दस्तावेज या चीज पेश करवाने के लिए उपर्युक्त व्यक्ति को आदेश जारी करेगा। एवं न्यायालय में पेश के लिए न्यायालय का पीठासीन अधिकारी इस धारा के अनुसार समन जारी करेगा।
2. अगर व्यक्ति न्यायालय या अधिकारी द्वारा मंगाए गए दस्तावेज या वस्तु को पेश कर देता है तब न्यायालय द्वारा जो अपेक्षा की गई थी उसका पालन व्यक्ति द्वारा किया गया ये समझा जाएगा।
3. यह धारा निम्न पर लागू एवं प्रभावी नहीं होगी:-
(A). भारतीय साक्ष्य अधिनियम,1872 की धारा 123(राज्य के कार्य कलाप के बारे में साक्ष्य प्रकट न करना, पुलिस दस्तावेज, पुलिस अन्वेषण, आयकर रिकॉर्ड। एवं धारा 124(शासकीय सूचनाएं)। या
•  बैंककार बही साक्ष्य अधिनियम,1891 पर लागू नहीं होगा।
(B). यह धारा डाक या तार अधिकारी की अभिरक्षा में किसी पत्र, पोस्टकार्ड, तार, पार्सल या अन्य दस्तावेज पर भी लागू नहीं होगी।

उधरणानुसार वाद:- ★जगदीश प्रसाद शर्मा बनाम बिहार राज्य-★* वाद में फर्म का एक खजांची फर्म के एक लाख रुपए के साथ फरार था। फर्म के मालिक के प्रार्थना-पत्र पर मजिस्ट्रेट ने आरोपी खजांची के बैकर को निर्देश दिया कि उसके खाते में उपलब्ध धनराशि को फर्म के स्वामी के नाम से ड्राफ्ट के रूप में तब्दील करके न्यायालय में प्रस्तुत करें। इस वाद में यह अवधारित किया गया कि आदेश बिना क्षेत्राधिकार के था क्योंकि धारा 91 मजिस्ट्रेट को इस बात के लिए अधिकृत नहीं करती हैं कि वह किसी वस्तु को जैसी कि उसके कब्जे में है, उससे भिन्न रूप में परिवर्तित करे। इस धारा का आशय अपराध के अन्वेषण,जाँच एवं विचारण में सहायता करना था न कि प्रश्नगत संपत्ति के निस्तारण करने के लिए सुविधा प्रदान करना।  :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)

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