कोई व्यक्ति जब किसी की हत्या जैसे गंभीर अपराध कर देता है, तब उसे भारतीय दण्ड संहिता की धारा 300 के अंतर्गत दोषी मानकर, दण्ड संहिता की धारा 302 के अंतर्गत मृत्यु दण्ड से लेकर उम्र कैद तक कि सजा का प्रावधान हमारी दण्ड संहिता में है। लेकिन एक और प्रावधान है भारतीय कानून में ऐसे उम्र कैद काट रहे अपराधियों के लिए। वो है ''पैरोल,, जिससे अपराधी कुछ दिनों तक जेल से बाहर आ सकता है। अगर वह पैरोल पर आकर अपराधी दोबारा किसी की हत्या करता है तब वह धारा 300 के अंतर्गत दोषी न होकर एक नई धारा के अंतर्गत दोषी होगा जानिए।
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 303 की परिभाषा:-
अगर कोई अपराधी को आजीवन कारावास से दाण्डित किया गया है और वह बाहर पैरोल पर आकर दोबारा किसी की हत्या करता है, तब वह अपराधी धारा 303 के अंतर्गत दोषी होगा।
महत्वपूर्ण वाद:-【इस अपराध के लिए पूर्व में मृत्यु दंड का प्रावधान था उच्चतम न्यायालय द्वारा इस अपराध के दण्ड को असंवैधानिक माना】
मिथ्यू बनाम पंजाब वाद - में उच्चतम न्यायालय ने भारतीय दण्ड संहिता की धारा 303 में मिलने वाली सजा को अनुच्छेद 14,19,एवं 21 का उल्लंघन होने के कारण असंवैधानिक घोषित किया गया है, अतः इस धारा के अधीन अपराधी को तुरंत मृत्यु दंड देना अन्यायपूर्ण होगा। ऐसे अपराधी को धारा 302 के अंतर्गत दण्ड का दोबारा प्रावधान रहेगा
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 303 के अपराध के लिए दण्ड का प्रावधान:-
अगर कोई आजीवन कारावास काट रहा अपराधी दोबारा कोई हत्या का अपराध करता है तब यह अपराध किसी भी प्रकार से समझौता योग्य नहीं होंगे एवं संज्ञेय और अजमानतीय होंगे न ही कभी पैरोल पाने के हकदार होंगे। इनकी सुनवाई का अधिकार सत्र न्यायालय को होगा। सजा- इस अपराध के लिए अधिकतम सजा मृत्युदंड दी जा सकती है या कम से कम जब तक मृत्यु न हो जाए तब तक की उम्र कैद साथ में जुर्माने से दाण्डित किया जा सकता है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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