क्या होता हैं स्त्री लज्जा-भंग का अपराध - LEARN IPC SECTION 354

आज भी हमारे समाज में महिलाओं को कुछ मंदबुद्धि के लोग एक मनोरंजन या टाइम-पास मानते हैं, समाज में तो ऐसे व्यक्ति मिलेंगे ही कुछ हद तक पति या नातेदार भी घर की स्त्री को मनोरंजन या भोग-विलास का साधन मानते हैं कही भी वह स्त्री की इज्जत पर हाथ डालते हैं अर्थात महिलाओं को सार्वजनिक स्थान पर गाली देना, हाथ पकड़ लेना, शरीर के किसी भी हिस्से पर हाथ रख देना। ऐसे बहुत सारे कृत्य है जिससे एक महिला की लज्जा-भंग होती है। यह स्त्री के लिए सामान्य बात नहीं है यह एक गंभीर अपराध होता है।

भारतीय दंड संहिता की धारा 376 एवं 354 में साधारण अंतर:-

भारतीय दण्ड संहिता की धारा 376 भी महिलाओं पर हो रहे शोषण के विरुद्ध है लेकिन धारा 376 तब लागू होती हैं जब महिलाएं आपने आप को लज्जा भंग करने वाले व्यक्ति से बचा न सके अर्थात कोई महिला किसी भी प्रकार से बलात्संग का शिकार हो जाए। धारा-376 के अपराध का छोटा रुप माना जाता है धारा-354 का अपराध एवं धारा 354 के अपराध में किसी भी उम्र की महिला हो सकती है।

भारतीय दण्ड़ संहिता,1860 की धारा 354 की परिभाषा:-

कोई व्यक्ति या महिला का नातेदार, स्त्री की लज्जा भंग करने के से जानबूझकर कर आपराधिक बल या हमला करेगा, अर्थात किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ जिससे महिला को शर्मिंदगी महसूस हो रही हो। तब ऐसा करने वाला व्यक्ति धारा 354 के अंतर्गत दोषी होगा।
नोट:-  •राजस्थान राज्य बनाम विजय राम:- वाद में न्यायालय द्वारा अभिनिर्धारित किया गया कि किसी सार्वजनिक स्थान पर या रिश्तेदारों के सामने पति द्वारा पत्नी को बार बार चूमना या शरीर के ऐसे स्थान को जिससे स्त्री लज्जा भंग होती है अर्थात कोई अश्लील हरकतें करना,धारा 354 के अंतर्गत अपराध होगा।
•राज पांडुरंग महाले बनाम महाराष्ट्र राज्य वाद में न्यायालय द्वारा कहा गया की 'लज्जा, स्त्री का आभूषण है, जो उसे उसे उसके नाते समाज द्वारा दिया जाता है कोई भी स्त्री की लज्जा भंग करना एक बहुत गंभीर अपराध होता है।
• श्रीमती चन्द्रकला बनाम रामकिशन:- आरोपी महिला को अपने ऑफिस के केबिन में बुलाकर उससे अश्लील बाते एवं हरकतें करने लगता है महिला आरोपी के केबिन से अपने आप को बचा कर निकल जाती है। न्यायालय द्वारा आरोपी को धारा 354 के अपराध में दोषसिद्ध किया गया।

भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 354 के अंतर्गत दण्ड का प्रावधान:-

इस धारा के अपराध किसी भी प्रकार से समझौता योग्य नहीं है, यह संज्ञेय एवं अजमानतीय अपराध होते हैं। इनकी सुनवाई का अधिकार किसी भी मजिस्ट्रेट को होता है। सजा- इस प्रकार के अपराध के लिए कम से कम एक वर्ष से अधिकतम 5 वर्ष तक कि कारावास एवं जुर्माने से भी दण्डित किया जा सकता है।
【राज्य संशोधन छत्तीसगढ़ द्वारा सजा- कम से कम दो वर्ष से अधिकतम सात वर्ष तक कि सजा का प्रावधान किया गया है एवं अपराध की सुनवाई का अधिकार प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट को किया गया है।】:- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)

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