अपहरण या व्यपहरण करने वाले को क्या सजा होती है हम पिछले कुछ लेखों में बता रहे हैं, आज हम आपको एक नई भारतीय दण्ड संहिता की धारा के बारे में जानकारी देंगे जो शायद अपने कभी नही सुनी होगी। आज की धारा का अपराध कल की धारा 367 से मिलता- जुलता ही है पर लागू कहाँ-कहाँ होती है ये जानकारी आपको देगे हम जानिए।
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 368 की परिभाषा:-
अगर कोई व्यक्ति किसी का अपहरण या व्यपहरण करके कहीं छिपा कर रखता है या बंदी बना कर (रोककर) रखता है, तब ऐसा करने वाला धारा 368 के अंतर्गत दोषी होगा।
महत्वपूर्ण नोट:- स्पष्ट है कि यह धारा व्यपहरण या अपहरण करने वाले मुख्य आरोपी के प्रति लागू नहीं होती है, केवल ऐसे व्यक्तियों के प्रति लागू होती हैं, जिन्होंने अपहरण या व्यपहरण किये गए व्यक्ति का छिपाने में या रोककर (बंदी) रखने में साथ दिया हो।
भारतीय दण्ड संहिता ,1860 की धारा 368 के अंतर्गत दण्ड का प्रावधान:-
इस धारा के अपराध किसी भी प्रकार से समझौता योग्य नहीं होते हैं, यह अपराध संज्ञेय एवं अजमानतीय अपराध होते हैं। इनकी सुनवाई उसी न्यायालय में होती हैं जहाँ मुख्य आरोपी का वाद चल रहा है।
सजा:- इस अपराध के लिए वही सजा का प्रावधान है जो अपहरण या व्यपहरण के प्रति लागू होती है।
उधरणानुसार वाद:- प्यारे लाल बनाम राज्य- सह आरोपी की पत्नी की बिक्री में सह आरोपियों की सह आपराधिकता साबित कर दी गई थी तथा पत्नी के खरीददार ने उस पर बलात्कार करके उसे मार डाला था। अतः उच्चतम न्यायालय ने सह आरोपी को धारा 368 के अंतर्गत दोषी ठहराया गया। बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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