श्रीमती शैली शर्मा। यह तो आप सभी ने अनुभव किया होगा कि बारिश का मौसम आते ही लकड़ी के दरवाजे और खिड़कियां अकड़ दिखाने लगते हैं। वह गर्मी के मौसम की तरह आसानी से बात नहीं मानते। उन्हें खोलने और बंद करने के लिए काफी ताकत का उपयोग करना पड़ता है। आइए पता लगाते हैं कि ऐसा क्या कारण है जो गर्मी के मौसम में अनुशासित स्टूडेंट की तरह हर बात मानने वाले लकड़ी के खिड़की-दरवाजे बरसात का मौसम आते ही उद्दंड बच्चे क्यों बन जाते हैं।
साइंस की सरल भाषा में समझते हैं, वातावरण में उपस्थित नमी को अवशोषित करके लकड़ी के खिड़की और दरवाजे फूल जाते हैं। चूँकि बरसात के मौसम में हर जगह नमी की अधिकता होती है इस कारण सभी वस्तुए नमी अवशोषित करती हैं।
फाइबर या लोहे के दरवाजों में बरसात की नमी क्यों नहीं बैठती
इसके पीछे भी जीव विज्ञान की एक प्रक्रिया है जिसे सामान्य रूप से विसरण (diffusion)कह सकते हैं परंतु यह विसरण से थोड़ा सा अलग होता है। अतः इसे अंतः चूषण या (imbibition) कहा जाता है।
चूँकि लकड़ी के दरवाजे या खिड़की या फर्नीचर पेड़ -पौधों से बने हैं जो कि प्रारंभिक अवस्था में जीवित होते हैं परंतु बाद में मृत अवस्था में आ जाते हैं परंतु उनमें बहुत अधिक मात्रा में छेद या pores पाए जाते हैं जो वातावरण की नमी को अवशोषित कर लेते हैं और फूल जाते हैं। इस कारण उनके साइज में अंतर आ जाता है और बारिश का मौसम खत्म होते ही कुछ समय बाद वह वापस अपने पुराने साइज में आ जाते हैं।
यही कारण है कि बड़े बुजुर्ग बारिश का मौसम आने से पहले ही लकड़ी के खिड़की दरवाजों पर वार्निश या फिर ऑयल पेंट कर दिया करते थे। ऐसा करने से लकड़ी में मौजूद छोटे-छोटे छेद भर जाते थे और फिर बारिश का पानी लकड़ी पर अपना कोई असर नहीं दिखा पाता था।
लेखक श्रीमती शैली शर्मा मध्यप्रदेश के विदिशा में साइंस की टीचर हैं। (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)