सरकार तो सरकार अदालत के आदेश को अंगूठा बताते स्कूलों के बारे में क्या कहा जाये ? ये शोषण के शिकंजे अपने ब्रांड बन चुके नाम के आधार पर कोरोना काल में भी शोषण का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। मनमानी फीस वसूलने के आदी हो चुके इन नामी स्कूलों ने ऑनलाइन शिक्षा के नाम पर उन्होंने अपने विद्यार्थियों को स्मार्टफोन, लैपटॉप आदि के जरिये पढ़ाई कराने की राह तलाश ली है। इसके साथ ही उन्होंने फीस वसूलने का आधार भी तय कर लिया है। बस अंतर यह है कि वे कहने को ट्यूशन फीस ही वसूल रहे हैं।
कुछ राज्य सरकारों जैसे गुजरात ने गुजरात हाईकोर्ट के आदेश के बाद कड़ा कदम उठाते हुए राज्य में स्कूलों पर बच्चों से स्कूल बंदी के दौर में किसी भी तरह की फीस लेने पर रोक लगा दी है। गुजरात सरकार ने इस सिलसिले में अधिसूचना भी जारी कर दी है। इसके तहत अगर बंदी के दौरान कोई स्कूल फीस लेता भी है तो उसे या तो अगले महीने की फीस में समायोजित करना पड़ेगा या फिर उसे लौटाना पड़ेगा। गुजरात सरकार का रुख इतना कड़ा है कि अगर स्कूलों ने इस नियम का उल्लंघन किया तो उनके खिलाफ जिला शिक्षा अधिकारी कड़ी कार्रवाई करेंगे।गुजरात हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका स्कूल बंदी के दौरान की फीस ना लेने के लिए आदेश देने के निमित्त दायर की गई थी। गुजरात सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले के बाद ऐसा कदम उठाया है। पता चला है गुजरात के स्कूलों ने इस आदेश के बाद ऑनलाइन कक्षाएं बंद कर दी थी। उनका कहना है कि जब वे फीस ही नहीं ले सकते तो फिर ऑनलाइन पढ़ाई क्यों जारी रखें, अब इस नये समझौते के बाद फिर ऑनलाइन पढ़ाई शुरू हुई है कि नियमित स्कूल चलने पर फीस के बाबत निर्णय होगा।
उल्लेखनीय है कि ऐसा ही आदेश दिल्ली सरकार अप्रैल माह में ही स्कूलों को दे चुकी थी। जिसमे सिर्फ ट्यूशन फीस लेने को कहा गया था, परन्तु आदेश सिर्फ कागजी ही बनकर रह गया। दिल्ली के तमाम ऐसे प्राइवेट स्कूल जो एक बार में तिमाही अग्रिम फीस लेते रहे हैं, जो अभी भी जारी है। दिल्ली सरकार ने आदेश में स्कूलों से यह भी कहा था कि अगर कोई अभिभावक फीस नहीं दे पाएगा तो उससे स्कूल जबरदस्ती नहीं करेंगे। इसके बदले में कुछ स्कूलों ने जुलाई की फीस देने में देरी होने पर छात्रों को ऑनलाइन कक्षा में ना सिर्फ चेतावनी दी, बल्कि खरी-खोटी भी सुनाई।
अभी देश के सभी राज्यों के निजी स्कूलों में परंपरा है कि हर सत्रारंभ के साथ विकास शुल्क, भवन शुल्क आदि के रूप में मोटी रकम छात्रों से वसूलते हैं। पहले से दाखिल छात्रों को अगली कक्षा में प्रमोट करने के बाद इन मदों में भी वे पिछले साल की तुलना में ज्यादा फीस लेते रहे हैं। दिल्ली सरकार के आदेश के बाद इस बार स्कूलों ने विकास और भवन के साथ ही ट्रांसपोर्ट फीस के नाम पर कोई रकम नहीं ली है, अलबत्ता ऑनलाइन पढ़ाई के नाम पर फीस जरूर ले रहे हैं। दिल्ली सरकार ने इस बाबत शिकायत के बाद भी कुछ नहीं किया। कारण अधिकांश नामी स्कूल बड़े लोगों के हैं।
बड़े स्कूलों और कॉरपोरेट की तरह चलने वाले स्कूल हर साल मोटी कमाई करते रहे हैं और मोटी बचत करते रहे हैं। वे चाहें तो अपने कर्मचारियों के दो-चार महीने का वेतन खर्च चला सकते हैं। लेकिन उदारीकरण के दौर में आई मुनाफा कमाने की संस्कृति के चलते शायद ही कुछ स्कूल हों, जिन्होंने ऐसा करने का सोचा हो।
कोरोना संकट ने सरकारों के सामने चुनौती खड़ी की है कि बदअमली कर रहे स्कूलों पर वह किस तरह लगाम लगाये अभीत समाज के समर्थ लोग स्कूल और अस्पताल को नोट छापने की मशीन से ज्यादा कुछ नहीं समझ रहे हैं।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।