NEET अल्पसंख्यक संस्थानों में भी लागू होगा: सुप्रीम कोर्ट / NATIONAL NEWS

नई दिल्ली। शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश का आधार मेरिट ही हो सकता है सुप्रीम कोर्ट ने इस पर मुहर लगा दी है। अल्पसंख्यक संस्थाओं में NEET को अमान्य करने वाले फैसले की समीक्षा करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि MMBS, MD या फिर डेंटल कोर्स के लिए पूरे देश में एक जैसी प्रवेश परीक्षा का आयोजन किसी भी दृष्टिकोण से गलत नहीं कहा जा सकता। संस्थाएं सरकारी सहायता प्राप्त हो या गैर सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक संस्था, किसी भी संस्थान के प्रबंधन, अनुदान या फिर सरकार द्वारा प्रदत्त विशेष दर्जा उसे NEET से मुक्त नहीं कर सकता।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा NEET EXAM की शुरुआत क्यों की गई

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस विनीत शरण और जस्टिस एमआर शाह की बेंच ने कहा कि नीट के जरिये मेडिकल और डेंटल कोर्स में दाखिले का जो फैसला लिया गया था वह एडमिशन में करप्शन को खत्म करने के लिए लिया गया है और यह दाखिला प्रक्रिया यूनिफॉर्म है। सुप्रीम कोर्ट ने उस दलील को खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि नीट प्राइवेट संस्थानों को व्यापार और व्यवसाय के संवैधानिक अधिकार में दखल देता है। 

क्या भारतीय संविधान का अनुच्छेद-19 (1) NEET जैसी प्रवेश परीक्षाओं को रोक सकता है

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद-19 (1) जी कहीं से भी पूर्ण अधिकार नहीं है और इसमें वाजिब रोक का प्रावधान है। स्टूडेंट के हित में यही है कि लोगों में जहां मेरिट है उसे आगे लाया जाए और जो बेहतरीन स्टूडेंट हैं उनको मान्यता मिले। एडमिशन में कदाचार को रोका जाए। इसके लिए यूनिफॉर्म प्रवेश परीक्षा ही तार्किक है और इसी कारण मेडिकल और डेंटल कोर्स में दाखिले के लिए नीट का प्रावधान किया गया है। 

सरकार को NEET जैसी प्रवेश प्रक्रिया बनाने और लागू करने का अधिकार है

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मेडिकल एडमिशन में बीमारी को रोकने के लिए साथ ही जिनका मेरिट कम है उन्हें कैपिटेशन फी लेकर दाखिला देने के चलन को रोकने के लिए यूनिफॉर्म एंट्रेंस टेस्ट यानी नीट जरूरी ताकि शिक्षण संस्थानों में व्यवसायीकरण पर लगाम लगाया जा सके। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संस्थानों द्वारा अपना-अपना एग्जाम लिए जाने से एक राष्ट्रीय स्तर पर प्रभाव पड़ता है। कोर्ट ने कहा कि इस तरह से स्वच्छता खत्म हो रहा था और मेरिट को दरकिनार किया जा रहा था। ऐसे में सरकार को पूरा अधिकार है कि वह ऐसा रेग्युलेशन बनाए और यह रेग्युलेशन सहायता प्राप्त और गैर सहायता प्राप्त प्राइवेट और अल्पसंख्यक संस्थानों पर लागू किया जा सके। सरकार को ऐसा करने का पूरा अधिकार है। 

धर्म और भाषा के अधिकार, संवैधानिक प्रावधान से ऊपर नहीं है

अदालत ने कहा कि अनुच्छेद-29 (1) और 30 यानी धार्मिक और भाषा आदि के अक्षुण्ता और उसके विकास के लिए काम करने के अधिकार का भी नीट उल्लंघन नहीं करता है। अदालत ने कहा कि यह तमाम अधिकार संवैधानिक प्रावधान से ऊपर नहीं है।

अल्पसंख्यक संस्थानों में NEET को लेकर क्या विवाद हुआ था

मेडिकल और डेंटल कोर्स में दाखिले के लिए केंद्र सरकार ने नोटिफिकेशन जारी किया था और 2012 में जारी नोटिफिकेशन के तहत नीट के जरिये एंट्रेंस एग्जाम लिए जाने का प्रावधान किया गया था। इसके दायरे में देश भर के तमाम संस्थान में दाखिले का प्रावधान किया गया। 18 जुलाई 2013 को सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस अल्तमस कबीर की अगुवाई वाली बेंच ने दो बनाम एक के बहुमत से नोटिफिकेशन को खारिज कर दिया। और कहा कि नीट माइनॉरिटी संस्थान के अधिकार का उल्लंघन करता है। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू के तौर पर आया। 2016 में सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने 2013 के फैसले को वापस ले लिया और फिर नए सिरे से सुनवाई का आदेश दिया। इस दौरान नीट को इजाजत दे दी कि वह दाखिला के लिए एग्जाम लेता रहे। अब तीन जजों की बेंच ने दिए फैसले में नीट पर मुहर लगा दी है।

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