संसद में उल्टे पंखे किसने और क्यों लगवाए थे, आइए रहस्य की बात जानते हैं / GK IN HINDI

क्या आप जानते हैं भारत की संसद भवन के सेंट्रल हॉल में जहां माननीय सांसद बैठते हैं, सीलिंग फैन उल्टे लगे हुए हैं। वह छत से नीचे की तरफ नहीं लटके हुए बल्कि जमीन पर गाड़े गए एक खंबे के टॉप पर लगाए गए हैं। बड़ा सवाल यह है कि ऐसा किसने किया और क्यों किया।

भारत के संसद भवन की कुल निर्माण लागत कितनी थी

संसद भवन विश्व के शानदार भवनों में से एक है जिसका निर्माण अंग्रेजो के द्वारा वर्ष 1921 में शुरू किया गया था और यह 1927 में बनकर तैयार हुआ था। भवन के निर्माण कार्य में कुल 83 लाख रुपये की लागत आई थी। संसद भवन का शिलान्यास ड्यूक आफ कनाट ने किया था और इसका उद्घाटन भारत के तत्कालीन वायसराय लार्ड इरविन ने किया था।

उल्टे पंखे लगाने का आदेश किसने दिया था

यह संसद भवन विश्व के किसी भी देश में उपस्थित वास्तुकला का एक बेहतरीन उदाहरण है। इसका डिजाइन उस समय के मशहूर वास्तुविद लुटियंस ने किया था और इसका निर्माण कार्य सर हर्बर्ट बेकर के निरीक्षण में संपन्न हुआ था। गोलाईदार गलियारों के कारण शुरू में सर्कलुर हाउस कहा जाता था। लोग कहते हैं है कि संसद भवन की छत बहुत ऊंची है इसलिए पंखे नीचे से लगाए गए लेकिन क्या आप इस तर्क को मानने के लिए तैयार हैं। अंग्रेजी शासन काल के वह इंजीनियर जिन्होंने इतना शानदार भवन बनाया। जिन्होंने पहाड़ काटकर रेल चला दी क्या वह छत से पंखे नहीं लटका सकते थे। बताया जाता है कि वास्तु विद लुटियंस ने इस तरह के पंखे लगाने का आदेश दिया था।

अंग्रेजों ने हिंदू मंदिर की तर्ज पर संसद का निर्माण करवाया था

ब्रिटिश आर्किटेक्ट सर एडविन के लुटियन और सर हर्बर्ट बेकर ने 1912-1913 में ब्रिटिश भारत के लिए एक नई प्रशासनिक राजधानी बनाने के लिए अपने व्यापक जनादेश के हिस्से के रूप में डिजाइन किया था। ऐसा कहा जाता है कि 11 वीं शताब्दी के चौसठ योगिनी मंदिर की गोलाकार संरचना ने भी भवन के डिजाइन को प्रेरित किया होगा। संसद भवन का निर्माण 1921 में शुरू हुआ और यह 1927 में बनकर तैयार हुआ था। 

क्या कभी पंखों को सीधा करने की कोशिश नहीं की गई 

1947 से लेकर आज तक यह सवाल कई बार उपस्थित हुआ। कई सांसदों में मांग की। एक बार तो प्रोजेक्ट ही तैयार हो गया था। इससे पहले कई बार स्टडी किया गया। लेकिन हर बार फैसला टाल दिया गया। इसके पीछे तर्क सिर्फ इतना सा दिया गया कि इस तरह के पंखे संसद के सेंट्रल हॉल को ऐतिहासिक बनाते हैं इसलिए इन्हें बदलना उचित नहीं होगा परंतु क्या आप 1947 से अब तक की तमाम सरकारों द्वारा स्वीकार की गई इस दलील से सहमत हैं। रहस्य लुटियंस के फार्मूले में छुपा है और कोई इसे छेड़छाड़ करना नहीं चाहता। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article
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